सरकार ओबीसी को नहीं दिला सकी न्याय?, सुप्रीम कोर्ट के ओबीसी आरक्षण बिना चुनाव पर कांग्रेस और सरपंच संघ ने सरकार पर बोला हमला

बालाघाट. सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनाव कराये जाने के दिये गये आदेश के बाद, प्रदेश में रजानीतिक हड़कंप मच गया है. जहां कांग्रेस इसे सरकार की नाकामी मान रही है, वहीं संकेत मिल रहे है कि सरकार इसके बाद पुर्नविचार याचिका दायर कर सकते है.

ओबीसी आरक्षण के मामले में सरकार को पंचायत चुनाव का अध्यादेश वापस लेना पड़ा था. चूंकि प्रदेश में सबसे ज्यादा ओबीसी है, ऐसे में सरकार ऐन आम चुनाव के पहले ओबीसी को नाराज नहीं कर सकती है अन्यथा आने वाले प्रदेश के आम चुनावो में सरकार को ओबीसी की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि प्रदेश का ओबीसी वर्ग अपने जायज हक की मांग सरकार से कर रहा है. बीते समय सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण को लेकर उठे बवाल के बाद चुनाव का अध्यादेश वापस लेना पड़ा था. जिसके बाद यह मामला कोर्ट मंे चला गया था. जिसमेें माननीय सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश में बिना ओबीसी आरक्षण के ही पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव संपन्न कराने का ना केवल सरकार को आदेश दिया है बल्कि मामले में लगाई गई याचिका पर फैसला देते हुए निर्वाचन आयोग को भी 2 हफ्ते के अंदर अधिसूचना जारी करने के निर्देश दिये है. माननीय कोर्ट ने कहा कि तय शर्तो को पूरा किये बिनो ओबीसी आरक्षण नहीं मिल सकता. अभी सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के साथ ही स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव कराने होंगे.

ओबीसी वर्ग में नाराजगी

ओबीसी वर्ग हमेशा से ही सरकार पर ओबीसी वर्ग की अनदेखी करने का आरोप लगाते आ रहा है. चूंकि प्रदेश में सर्वाधिक संख्या ओबीसी वर्ग की है, जिससे ओबीसी वर्ग संख्या के अनुसार हिस्सेदारी की मांग कर रहा है. जहां प्रदेश में तत्कालीन सरकार ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया था. वहीं चुनाव को रोटेशन और परिसीमन के आधार पर कराये जाने की बात कही थी, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस सरकार, सत्ता बदली के बाद हट गई औैर प्रदेश में भाजपा सरकार काबिज हो गई. जिसने तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पंचायत चुनाव में रोटेशन और परिसीमन की प्रक्रिया को अलग कर पूर्व के आरक्षण के आधार चुनाव का अध्यादेश लाकर चुनाव कराने की घोषणा कर दी थी. जिसमें ओबीसी फेक्टर एक बार फिर चुनाव पर भारी पड़ा और इसको लेकर माननीय कोर्ट में मामला जाने के बाद सरकार ने पंचायत चुनाव का अध्यादेश वापस लेकर चुनाव को स्थगित कर दिया था. हालांकि इसके बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ओबीसी वर्ग को स्थानीय निकाय एवं पंचायत चुनाव में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आये आदेश के बाद ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है. जिससे ओबीसी वर्ग में निराशा का माहौल है.

आयोग अध्यक्ष के निर्देशन में तैयार हुई ओबीसी सर्वेक्षण रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं कोर्ट 

प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर लटके चुनाव के बाद सरकार ने पूरे प्रदेश में ओबीसी के सर्वेक्षण की रिपोर्ट तैयार की थी. जिसकी जिम्मेदारी आयोग अध्यक्ष के कंधो को सौंपी गई थी. जिसके बाद आयोग अध्यक्ष ने इस मामले में सभी जिला कलेक्टरोें को निर्देशित करने के साथ ही जिलेवार ओबीसी की स्थिति को लेकर सर्वेक्षण भी किया था और उसकी रिपोर्ट सरकार को भी सौंपी थी. जिस रिपोर्ट पर माननीय कोर्ट ने असंतुष्टी जाहिर की है. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव में फिलहाल के लिए ओबीसी आरक्षण ना देने पर आसमान नहीं गिर पड़ेगा. मध्यप्रदेश सरकार के संकलित आंकड़े और सर्वेक्षण रिपोर्ट संतोषजनक नहीं होने पर राज्य में भी महाराष्ट्र के लिए तय व्यवस्था के आधारपर ही स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव कराये जायें.  

बिना ओबीसी आरक्षण के स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनाव अधूरे-जीतु राजपूत

सरपंच संघ जिलाध्यक्ष जितेन्द्र जीतु राजपूत ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के बिना ओबीसी आरक्षण के स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव कराये जाने के आदेश को माननीय न्यायालय का निर्णय बताया है, लेकिन इसको लेकर उन्होेंने प्रदेेश की भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोला है. उन्होंने कहा कि सरकार ने आरक्षण नहीं देने के आरएसएस के एजेंडें को लागु किया है. जो ओबीसी के साथ अन्याय है. बिना ओबीसी आरक्षण के स्थानीय निकाय और पंचायत के चुनाव अधूरा है. हमारा भी मानना है कि समय पर चुनाव होना चाहिये, लेकिन चुनाव में मिलने वाले आरक्षित वर्ग को आरक्षण का लाभ भी मिलना चाहिये.

सरकार ओबीसी को न्याय नहीं दिला सकी-विशाल बिसेन

कांग्रेस प्रवक्ता विशाल बिसेन ने कहा कि पूर्व में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ओबीसी आरक्षण को लेकर ट्रिपले टेस्ट कराये जाने की बात कही थी,लेकिन सरकार ने उसे पूरा नहीं किया. माननीय कोर्ट में सही तरीके से ओबीसी के आंकड़ो का प्रस्तुतीकरण नहीं किया गया और तत्कालीन सरकार ने जो रोटेशन और परिसीमन के से चुनाव कराये जाने का फैसला लिया था, उसे सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा सरकार ने बदल दिया. जिसके बाद यह विवाद माननीय न्यायालय तक पहुंचा. जिसमें ओबीसी कल्याण आयोग ओबीसी वर्ग को न्याय दिलाने में अक्षम रहा है. इसी कारण यह फैसला आया है. हम सभी के लिए माननीय न्यायालय का निर्देश सर्वमान्य है, जिसे मानकर निर्वाचन आयोग, चुनाव कराये, लेकिन ओबीसी के साथ अन्याय को झुठलाया नहीं जा सकता.


Web Title : GOVERNMENT COULD NOT GIVE JUSTICE TO OBCS?, CONGRESS AND SARPANCH SANGH ATTACK GOVERNMENT OVER ELECTIONS WITHOUT OBC RESERVATION OF SUPREME COURT