जिसका परिवारवालों ने कर दिया था मरण संस्कार वह जीवित लौटा घर, कहानी फिल्मी जरूर पर सच्ची

बालाघाट. अक्सर फिल्मो मंे हमने देखा है कि कलाकार की मौत की खबर के बाद वह फिर जीवित घर लौट आता है, ऐसी ही फिल्मी कहानी का वास्तविक किरदार, जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र पाथरी चौकी निवासी 52 वर्षीय बिरिजलाल घर लौटा तो परिवार में खुशी छा गई. कहानी भले ही फिल्मी हो लेकिन सच्ची है.  जिस बिरिजलाल को परिवारवालों ने मृत समझकर मरण संस्कार कर दिया था, वह बिरिजलाल, 15 साल बाद घर लौट आया है. झारखंड के जमशेदपुर से आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने प्रशासन और पुलिस की मदद से उसे लेकर 23 जनवरी को बालाघाट पहुंचे.  37 साल की उम्र में गांव से साथियों के साथ कमाने खाने नागपुर गया बिरिजलाल, अपने साथियों से बिछड़कर भटक गया था. चूंकि समझदार नहीं होने से वह महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, केरल से भटककर झारखंड पहुंच गया था. जहां कुछ सामाजिक संगठनो ने उसे बीमार हालत में देखा तो उसे सहारा दिया और उसके बारे में पता किया. किसी तरह जिले के अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद जिलाध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम से संपर्क होने के बाद झारखंड के जमशेदपुर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फोटो साझा की. जिस आधार पर जिले में उसकी पहचान जिले के नक्सल प्रभावित पुलिस चौकी पाथरी के ग्राम पंचायत लहंगाकन्हार के सोमटोला निवासी संरक्षित बैगा जनजाति के ब्रजलाल के रूप में हुई. जिसके बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद अथक प्रयास से 23 जनवरी को झारखंड के जमशेदपुर से उसे बालाघाट लाया गया. जिले के नक्सल प्रभावित पुलिस चौकी पाथरी के ग्राम पंचायत लहंगाकन्हार के सोमटोला में निवासरत संरक्षित बैगा जनजाति का ब्रजलाल की पूरी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है, लेकिन आज 15 वर्षाे बाद उसके घर लौटने से परिवार में खुशी का माहौल है.  

प्रशासनिक मदद से आदिवासी समाज के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भुवन कोर्राम और उनके साथी, उसे लेकर झारखंड से बालाघाट पहुंचे. यहां बालाघाट के काली पुतली चौक स्थित चौपाटी मंे सामाजिक संस्थाओं ने उनका स्वागत किया. 15 सालांे बाद घर लौटने की खुशी ब्रजलाल के चेहरे पर साफ नजर आ रही थी. टूटी-फूटी हिंदी भाषा में ब्रजलाल जितना मीडिया के सवालों को समझ सका, उसके आधार पर दिए गए जवाब में उसका महज इतना कहना था कि वह साथियो के साथ नागपुर जाने के बाद भटक गया था और आज घर लौटकर वह काफी खुश है.  गौरतलब हो कि 15 सालों से देश के विभिन्न हिस्सो में भटक रहे ब्रजलाल की कहानी, किसी फिल्म स्टोरी से कम नहीं है. 15 साल पहले ब्रजलाल अपने गांव के कुछ लोगों के साथ मजदूरी करने के लिये नागपुर महाराष्ट्र गया था, लेकिन कुछ दिनों काम करने के पश्चात वह अपने साथियो से भटक गया. चूंकि ब्रजलाल ग्रामीण परिवेश का होने से उसे ज्यादा समझदारी नहीं थी. जिसके चलते वह इतने दिनों तक कभी केरल, छत्तीसगढ़, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मसूर सहित अन्य जगह भटकते हुए झारखंड के जमशेदपुर में बीमार हालत में एक सामाजिक संस्था को मिला था. जिसे वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सहारा देते हुए उसकी तमाम व्यवस्था की. पिछले 8 महीने से वह रहते हुए कुछ बोलने लायक हुआ तो तब उसके बताये अनुसार वहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आदिवासी समाज के सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क किया.

जिसके बाद अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद जिलाध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम और उसके साथी, सामाजिक सहयोग से झारखंड पहुंचे थे. जहां उन्हांेने ब्रजलाल से मुलाकात की, लेकिन ब्रजलाल बैगा को झारखंड से लाने में आ रही कानूनी दिक्कतों के कारण, वहां उसे बिना लाए लौट आए थे. जिसके बाद विगत दिनों परिवार के साथ आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने प्रशासन से मुलाकात कर उसे लाने आर्थिक मदद और कानूनी दिक्कतों को दूर किए जाने की मांग की थी.  मामले को गंभीरता से लेते हएु प्रशासन और पुलिस ने आर्थिक मदद के साथ ही कानूनी दिक्कतों की समस्या का हल किया. जिसकी मदद से गत सोमवार को अभा आदिवासी विकास परिषद के जिलाध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम अपने साथियों के साथ झाारखंड से ब्रजलाल को बालाघाट लेकर पहुंचे. 15 साल बाद ब्रजलाल को लेकर बालाघाट लौट रहे जिलाध्यक्ष भुवनसिंह कोर्राम ने बताया कि 15 साल पहले घर से निकले जिस ब्रजलाल के घर नहीं लौटने पर परिवार ने उनका मरण संस्कार कर दिया था, आज उसके जीवित होकर घर लौटने का परिवार का बेसब्री से इंतजार कर रहा था, उसे लेकर वह झारखंड के जमशेदपुर से बालाघाट पहुंचे. आज परिवार में फिर ब्रजलाल के पहंुचने से खुशी का माहौल है. इसके बाद वह शेष जीवन अब अपने परिवार के साथ सुखद जीवनयापन करते हुए बिताएगा.  उन्होंने कहा कि ब्रजलाल एक उदाहरण है, देश में काबिज रही सरकारों के लिए, देश की स्वतंत्रता के 75 वर्षो बाद भी देश के नागरिक अपने मौलिक अधिकारों मूलभूत सुविधाओं से वंचित होने का परिणाम देश में विशेष दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय मानव घोषित विशेष संरक्षित बैगा जनजाति आज भी दुर्दशा और बदहाली का शिकार है, जिसके जीवनस्तर में कोई सुधार नहीं है, अब इसके लिए जिम्मेदार कौन है?


Web Title : WHOSE FAMILY HAD CREMATED THE DEAD HE RETURNED HOME ALIVE, THE STORY IS DEFINITELY FILMY BUT TRUE