26 दिसंबर साल का आखिरी सूर्य ग्रहण, धनु राशि पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर

वर्ष 2019 अपने अंतिम पड़ाव पर लोग नए वर्ष के स्वागत की तैयारी कर रहे हैं मगर, इन तैयारियों के बीच 26 दिसंबर को सूर्य ग्रहण होने की भी सूचना है.   हिंदू धर्म में ग्रहण का बहुत महत्व है. साल में कई ग्रहण आते हैं. इस बारे में उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित मीनष शर्मा कहते हैं, ‘यह ग्रहण केवल भारत में नहीं पड़ रहा बल्कि यह ग्रहण ऐशिया के कई देशों में नजर आएगा. ’ आपको बता दें कि भारत के ज्यादातर इलाकों में यह सूर्य ग्रहण खंडग्रास रूप में नजर आएगा. यानि यह पूर्ण रूप से नहीं नजर आएगा. वहीं साउथ इंडिया में यह सूर्य ग्रहण कंकणाकृति रूप में नजर आएगा. यानी यह पूर्ण रूप से नजर आएगा.

सूर्य ग्रहण का समय 

पंडित मनीष शर्मा के अनुसार भारत में सूर्य ग्रहण मात्र 2 घंटे 52 मिनट के लिए ही रहेगा. सुबह 8:04 से यह ग्रहण शुरू होगा और यह 10:56 पर खत्म हो जाएगा. इस दिन पौष मास की अमावस्या भी है. यदि आप ग्रहण को मानते हैं तो आपको ग्रहण के खत्म होने के बाद किसी भी पवित्र नदि में स्नान करना चाहिए. इससे आप पूरी तरह शुद्ध हो जाएंगे.  

धनु राशि पर होगा असर

2019 का अंतिम सूर्य ग्रहण से सबसे ज्यादा प्रभावित धनु राशि रहेगी. आपको बता दें कि इस ग्रहण का असर मूल नक्षत्र और धनु राशि पर होगा. ग्रहण के समय सूर्य, बुध, गुरु, शनि, चंद्र और केतु धनु राशि में एक साथ रहेंगे. इतना ही नहीं केतु के स्वामित्व वाले नक्षत्र मूल में ग्रहण होगा मगर इससे, नवांश या मूल कुंडली में किसी प्रकार का कोई अनिष्ट योग नहीं है.   यानि आपको इससे कोई नुकसान नहीं होगा.   पंडित मनीष शर्मा यह भी बताते हैं कि इस बार सूर्य ग्रहण के पूर्व चंद्र ग्रहण नहीं हुआ है इस लिए इस सूर्य ग्रहण से प्रकृति को भी कोई नुकसान नहीं होगा.   ग्रहण का प्रभाव मूल नक्षत्र और धनु राशि वालों पर ज्यादा रहेगा.   

कब लगेगा सूतक 

सूर्य ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पूर्व से माना जाता है इस लिए 25 दिसंबर की रात 8 बजे से ही सूतक शुरू हो जाएगा, जो ग्रहण के खत्म होने के साथ ही समाप्त होगा.  

धार्मिक मान्यता

शास्त्रों की मानें तो जब संसार की स्थापना की जा रही थी तब देवों ने संसार को बसाने के लिए समुद्र मंथन किया था.   समुद्र से जो चीजें निकली थीं वह संसार की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण थीं.   मगर, समुद्र मंथन के लिए त्रिदेवों को देवता गण और असुरों की आवश्यकता थी.   तब भगवान विष्ण ने असुरों और देवताओं को अमृत का लालच दिया.   इस पर वह दोनों ही तैयार हो गए.   समुद्र मंथन में जब अमृत निकला तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और देवताओं को अमृतपान करवाया.   उस समय राहु नाम का असुर ने भी देवताओं का वेश धारण करके अमृत पान कर लिया था.   

जब इस बात का आभास  चंद्र और सूर्य को हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु को इस बात की सूचना दी और उन्होंने राहु केतू का अपने सुदर्शन चक्र से वध कर दिया.   वह अमृत पी चुके थे लिए उनकी मृत्यु नहीं हुई.   इस घटना के बाद से ही सूर्य और चंद्र से राहु केतू शत्रुता निभा रहे हैं.   इस घटना के बाद राहु चंद्र और सूर्य से शत्रुता रखता है और समय-समय पर इन ग्रहों को ग्रसता है.   इसी घटना को सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण कहते हैं.  


Web Title : DECEMBER 26, THE LAST SOLAR ECLIPSE OF THE YEAR, WILL HAVE THE HIGHEST IMPACT ON SAGITTARIUS

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