रक्षा बंधन के दिन ही खुलता है यह मंदिर, जाने क्यों 364 दिन रहता है बंद

धर्म : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रक्षा बंधन को रक्षा का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाई को राखी बांधती है और भाई बहन की रक्षा का संकल्प लेता है. हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन सिर्फ भाई और बहन को ही नहीं बल्कि भगवान, मंदिर और वाहनों को भी राखी बांधी जाती है. इस दिन कई मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना भी की जाती है, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो सिर्फ रक्षा बंधन के मौके पर ही खुलता है.

बदरीनाथ क्षेत्र की उर्गम घाटी में मौजूद श्री वंशी नारायण मंदिर साल के 364 दिन बंद रहता है. रक्षा बंधन के दिन ही इस मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जाते हैं. इस पूरे दिन भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती हैं और शाम ढलने से पहले इस मंदिर के कपाट बंद भी कर दिए जाते हैं. यह वंशीनारायण मंदिर उर्गम घाटी में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के बुग्याल क्षेत्र में स्थित है.

मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग सात किमी तक पैदल चलना होता है. रास्ता बहुत ही खराब होने की वजह से इस मंदिर में रोजाना पूजा-अर्चना नहीं की जाती है. रक्षा बंधन के दिन यहां महिलाओं की बहुत भीड़ रहती हैं क्योंकि, महिलाएं इस दिन भगवान विष्णु को राखी बांधने यहां पहुंचती हैं.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था. कहते हैं इस मंदिर में देवऋषि नारद ने साल के 364 दिन भगवान विष्णु की भक्ति की थी. इस वजह से साल के एक ही दिन आम इंसान भगवान विष्णु की आराधना कर सकता है. कहते हैं कि एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया था कि वह उनके द्वारपाल बने. भगवान विष्णु ने राजा बलि के आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए.

भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने के कारण माता लक्ष्मी बहुत चिंतित हुई और नारद मुनि के पास गई. नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि भगवान विष्णु पाताल लोक में हैं और राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं. इस पर नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को कहा कि भगवान विष्णु को वापस पाने के लिए आपको श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक जाना होगा. वहां पहुंचकर आपको राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर उनसे भेंट में भगवान नारायण को वापस मांगना होगा. माता लक्ष्मी को पाताल लोक तक पहुंचाने में नाराद मुनि ने उनकी मदद की. इसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने नारायण भगवान की पूजा की तब से यह परंपरा चली आ रही है.

Web Title : THE TEMPLE OPENS ON THE DAY OF THE DEFENCE BOND ITSELF, KNOWING WHY 364 DAYS LASTS CLOSED

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