महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन

जैसे उत्‍तर भारत में काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है उसी तरह मध्‍यप्रदेश में उज्‍जैन को शिव का तीर्थ माना जाता है.

यहां शिव महाकाल के रूप में स्‍थापित हैं. कुंभ का आयोजन होता है उज्‍जैन में 

पृथ्वी की नाभि कही जाने वाली उज्जैन नगरी में श्रीमहाकाल विराजते हैं.  

इन्हें संपूर्ण मृत्युलोक  यानी इस संसार का अधिपति माना गया है.  

शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में महाकाल ज्योतिर्लिंग के प्रकट होने की कथा का उल्लेख मिलता है.  

शिप्रा नदी के तट पर बसे उज्जैन शहर का इतिहास 5,000 वर्षों से भी अधिक पुराना बताया जाता है.  

पहले इसे उज्जयिनी या अवंतिका कहा जाता था. सनातन धर्म की 7 पवित्र पुरियों में से यह भी एक है.  

यहां प्रत्येक 12 वर्षों के अंतराल पर एक पूर्णकुंभ और हर 6 साल के बाद अर्द्धकुंभ का मेला लगता है.  


महाकवि कालिदास की भूमि

उज्जैन महाराज विक्रमादित्य की राजधानी और महाकवि कालिदास की सृजन-स्थली के रूप में विख्यात है.  

प्राचीनकाल से ही उज्जैन संत-महात्माओं और तांत्रिकों की साधना का प्रमुख केंद्र रहा है.  

उज्जैन के सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने ही विक्रम संवत के नाम से नए संवत् की शुरुआत की थी.  

मत्स्य पुराण के अनुसार पार्वती जी के अपहरण का प्रयास करने वाले अन्धक दैत्य से शिवजी का युद्ध महाकाल वन में ही हुआ था.  

51 शक्तिपीठों में से एक हरसिद्धि माता का मंदिर भी यहीं स्थित है.  

इस मंदिर के गर्भगृह की विशेषता है यह है कि उसकी शिला पर श्रीयंत्र प्रतिष्ठित है.  

राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी के रूप में इनकी पूजा-अर्चना होती थी.  

आज भी उन्हें इस शहर की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है.  

किसी भी नए कार्य का शुभारंभ करने से पहले लोग इनका आशीर्वाद लेने अवश्य जाते हैं.  

ऐसी मान्यता है कि यह लोगों के सभी कार्य सिद्ध कर देती हैं.  

मंदिर के भीतर एक विशाल दीपमालिका स्तूप है, जिसमें प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के अवसर पर  असंख्य दीप जलाए जाते हैं, जो महाकाल मंदिर से भी दिखाई देते है.  


महाकाल का मंदिर

देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में श्रीमहाकाल एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जिसकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता महाकाल के रूप में की गई है.  

महाकाल का अर्थ है-समय और मृत्यु के देवता.  

इसके निर्माण की वास्तविक तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है लेकिन इस प्राचीन श्रीमहाकाल मंदिर का प्रथम पुनर्निर्माण 11 वीं शताब्दी में हुआ था.

इसके बाद भी इसे विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा क्षतिग्रस्त किया गया था.  

ऐसा माना जाता है कि लगभग 250 वर्ष पहले सिंधिया राज्य के दीवान बाबा रामचंद शैणवी ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था.  

महाकाल मंदिर के परिसर में भी अन्य देवी-देवताओं के कई मंदिर हैं.  

श्रावण मास में और शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है.  

यह एकमात्र ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर है.  

यह मंदिर भस्म से की जाने वाली आरती के लिए प्रसिद्ध है.  

ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में यहां शमशान के भस्म से आरती होती थी लेकिन आजकल इसके लिए उपले की राख का उपयोग किया जाता है.  

इसी मंदिर परिसर में नागचंद्रेश्वर महादेव का मंदिर है, जो सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही खुलता है.


45 दिनों का सावन

उजजैन में श्रावण मास पूरे 45 दिनों का होता है.  

अर्थात रक्षाबंधन के बाद भादों महीने के पूरे कृष्ण पक्ष की गणना सावन में ही की जाती है.  

यहां सावन के प्रत्येक सोमवार को बड़े धूमधाम से बाबा महाकाल की शाही सवारी निकाली जाती है.

यह उत्सव इतना भव्य होता है कि पूरा मालवा क्षेत्र इसके उल्लास में डूब जाता है.  


इन्‍हें भी देखें

इसके अलावा जब आप उज्‍जैन आयें तो इन स्‍थानों पर भी अवश्‍य घूमें.

यहां कालभैरव, गढ़कालिका, सिद्धवट, चौंसठ योगिनी, संदीपनी आश्रम, मंगलनाथ, भर्तृहरि गुफा, चिंतामणि गणेश और नवग्रहनाथ मंदिर आदि भी दर्शनीय है.  

इसके अलावा थोड़ी ही दूरी पर स्थित ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के दर्शन के लिए भी जाना चाहिए.  

ये भी भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं.  

इसीलिए महाकाल की यह नगरी तीर्थों की नगरी कही जाती है.  


Source : Jagran

Web Title : UJJAIN CITY OF MAHAKALESHVAR