भाजपा की एकतरफा जीत पर कांग्रेस ने लगाया ब्रेक, लाखो वोटो से जीत का भाजपाईयों का दावा नजर आ रहा कमजोर

बालाघाट. लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में 19 अप्रैल को बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र में मतदान के बाद भाजपा और कांग्रेस जीत-हार का गणित लगा रही है. बूथो से मतदान की जानकारी लेने के बाद अब पदाधिकारियों और नेताओं से इस बारे में पार्टियां जानकारी एकत्रित की जा रही है. भले ही दोनो ही पाटियां जीत का दावा कर रही है, लेकिन दोनो ही पार्टी के नेता मजबूती से यह दावा नहीं कर पा रहे है. वहीं जिस तरह से वर्ष 2019 की अपेक्षा 2024 में मतदान प्रतिशत कम रहा है, उससे भाजपा की लाखों वोटों से जीत का कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है, यही कारण है कि चुनाव को 06 दिन बीत जाने के बाद भी ना तो नेता, ना ही पार्टी ने कोई बयान जारी किया है. संसदीय चुनाव पर गौर करें तो 2024 का बालाघाट-सिवनी संसदीय चुनाव, बीते परसवाड़ा विधानसभा की तरह नजर आ रहा है. भाजपा को विश्वास है कि यदि बसपा प्रत्याशी ज्यादा वोट लेते है तो उनकी जीत पक्की है, वहीं संसदीय क्षेत्र में हुए मतदान के बाद, लोगों से हुई, चर्चा पर विश्वास करें तो परसवाड़ा विधानसभा चुनाव की तरह संसदीय क्षेत्र का चुनाव भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहा है. इस चुनाव में अपेक्षानुरूप, वोट शिफ्टिंग, भाजपा के अनुरूप नहीं है. जिससे संसदीय क्षेत्र में जीत-हार का मुकाबला एकतरफा नहीं है.  

वहीं भाजपा और कांग्रेस में चुनाव की कमान संभालना वाला, कोई नहीं होने से चुनाव के प्रचार से लेकर मीडिया मैनेजमेंट कमजोर रहा है. जिससे भी प्रत्याशियों को नुकसान की उम्मीद से इंकार नहीं किया जा सकता है.  भाजपा के साथ सबसे बड़ी चिंता यह है कि दशको से यह सीट भाजपा के पास है, जहां पूर्व के चुनाव में यह लगभग तय हो जाता था कि भाजपा की जीत सुनिश्चित है लेकिन इस चुनाव में जीत के सुनिश्चित होने पर संशय बना है. जिसका प्रमुख कारण, संसदीय चुनाव के पूर्व में जिले के नेताओं और संगठन पर विश्वास ना करके, केवल एक नेता के ही अगुवाही करते हुए दिखाई देना है, हालांकि उनकी मौजूदगी से हो रही चर्चाओं के बाद, जब तक वह नेता, प्रचार से दूर होते, तब तक चुनावी प्रचार और मैनेजमेंट में कोई निर्णय नही होना, भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में नहीं रहा. वहीं सूत्रों की मानें तो मैनेजमेंट की जिम्मेदारी, भाजपा में ऐसे लोगो को दी गई, जिनके बारे में चर्चा है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए, जिसका भी नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा है.  

कांग्रेस की बात करें तो चुनाव के पहले करोड़ो खर्च की ताकत रखने वाले प्रत्याशी के खुद चुनाव प्रबंधन को संभालना भी, कांग्रेस के नेताओं को रास नहीं आया है. अक्सर कांग्रेसी कार्यक्रमों या आंदोलनो में भीड़ जुटाने वाले, कांग्रेसी नेता, पूरे चुनाव के दौरान, प्रचार के लिए गाड़ी और खर्च को लेकर परेशान होते रहे है, जिसके कारण एक गरीब वर्ग में उनका जो वोट बैंक माना जाता है, वह, उन तक नहीं पहुंच सके. हालांकि रोजाना ही, उन्होंने प्रयास किया कि वह प्रत्याशी को इस बारे में समझा सके, लेकिन प्रत्याशी, आसपास के आभामंडल से बाहर ही ना सके.  कुल मिलाकर पूरे चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी ने पार्टी नेता मैनेजमेंट और वोटर मैनेजमेंट में वह काम नहीं किया. जो पूर्व चुनाव में दिखाई देते रहा है. यही कारण है कि मतदान के बाद जो खबरे आ रही है, उसके अनुसार संसदीय क्षेत्र के चुनाव का परिणाम फंसा दिखाई दे रहा है. केन्द्र सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और विधानसभा चुनाव में भाजपा के किसानों और महिलाओं से किए गए वादों के पूरा नहीं होने से भाजपा के खिलाफ जो वोट पड़े है, उससे भाजपा की एकतरफा जीत की सोच पर कांग्रेस ने जरूर ब्रेक लगा दिया है, लेकिन कांग्रेस, ने मैनेंजमेंट की गड़बड़ी और अंत समय में की गई कंजूसी से भाजपा को जीत के प्रति सोच बनाने का एक मौका दे दिया है.  

फिलहाल आगामी 04 जून को लोकसभा चुनाव के घोषित परिणाम के बाद यह साफ हो जाएगा कि संसदीय क्षेत्र का अगला सांसद कौन होगा, लेकिन तब के लिए प्रत्याशियों और पार्टी नेताओं के लिए यह समय मुश्किलों भरा है, जिसे कैसे काटा जाए, यह भी उन्हें समझ नहीं आ रहा है.  


Web Title : CONGRESS PUTS BRAKES ON BJPS ONE SIDED VICTORY, BJPS CLAIM OF VICTORY BY LAKHS OF VOTES SEEMS WEAK