कान्हा रे थोड़ा सा प्यार दे, निकेतन में प्रशिक्षकों और प्रशिणार्थियों ने किया गरबा

बालाघाट. कान्हा और राधा का है गरबा, जिसमें कृष्ण ने अपनी 14 लीलाओं का वर्णन नृत्यों के माध्यम से करके विश्व को ज्ञान प्रदान किया. और प्रेम-प्रतीक राधा के माध्यम से लोक संस्कृति में गरबा का जन्म हुआ. गरबा एक लोक संस्कृति का नृत्य है, जो विभिन्न अवसरों में अपनी विभिन्न शैली अर्थात् श्री कृष्ण की 14 लीलाओं में गरबा किया जाता है.  

जिले की सांस्कृतिक संस्था नूतन कला निकेतन की स्थापना का उद्देश्य ही कला संस्कृति का संवर्धन एवं संरक्षण है. इसी के चलते इस वर्ष निकेतन ने 26 दिवसीय लोक संस्कृति गरबा नृत्य का प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित किया था. जिसका समापन एवं प्रदर्शन गत गुरूवार की रात्रि 8 बजे से 10 बजे तक किया गया. जिसमें 26 दिनों तक निरंतर प्रशिक्षण प्राप्त करने वाली 35 महिलाओं ने अपने प्रशिक्षक सुश्री भारती जंघेल तथा चंद्रहास बघेल के साथ श्री कृष्ण की रासलीला का सजीव चित्रण कर गरबा किया. यह गरबा लोक शैली का मूल गरबा था. इसी के साथ 35 प्रशिक्षणार्थी एवं निकेतन के कलाकारों ने भी कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती अमिता गुप्ता, श्रीमती ओमेश्वरी माथरे एवं प्रमुख संयोजिका श्रीमती जयश्री त्रिवेदी के निर्देशन एवं नेतृत्व में सामूहिक रास गरबा एवं डांडिया किया. यह डांडिया रास भी श्री कृष्ण राधा की संयुक्त परिक्रमा के अनुरूप था. जिसने उपस्थित दर्शकों को भाव विभोर कर दिया. दर्शक दीर्घा में बैठे निकेतन के संस्थापक सदस्य खुशाल बैदमुथा, किरण भाई त्रिवेदी एवं शहर के गणमान्य नागरिकों के साथ प्रत्येक समाज की महिलाएं उपस्थित थी और पूरा निकेतन परिसर गरबा के परिधान से शोभावान हो रहा था.  


Web Title : KANHA RE THODA RE PYAAR DE, TRAINERS AND TRAINEES PERFORM GARBA AT NIKETAN