बालाघाट. वन और खनिज संपदा से परिपूर्ण जिले में खेल प्रतिभाआंे की कमी नहीं है. क्रिकेट, हॉकी, कबड्डी, तैराकी, शतरंज, मैराथन, दौड़ सहित अन्य विद्याओ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, बशर्ते जरूरत है कि उन्हें एक अच्छे मैदान और कोच की. जिसकी कमी खेल खेलने वाले बच्चों के अभिभावको को हमेशा से रही. विपरित हालत में खिलाड़ियो ने अपने के हौंसले और अपने प्रयास से वह मुकाम हासिल किया. जिसके लिए खिलाड़ी, अपने खेल में अपेक्षा करता है. ऐसे ही दो जिले के दो तैराक है. जिन्होंने बजरंग घाट में अपने पिता और संघ के अन्य पदाधिकारियों की तैराकी से हुनर हासिल कर अपने तैराकी के खेल मंे अपनाकर खेल की उंचाईयांे तक जिले, परिवार और अपना नाम पहुंचाया है.
मुकुल पिता एसआई मनोज पंचबुद्धे और अन्या पिता संजय भोयरकर ने अंडर-19 और अंडर-14 में स्कूल के स्टेट लेवल काम्पिटिशन में अपना नाम दर्ज कराया है. जो आगामी अक्टूबर माह में होने वाली प्रतियोगिता मे जिले का प्रतिनिधित्व करेंगे.
दोनो ही प्रतिभागियों के चयन पर तैराकी संघ ने खुशी जाहिर करते हुए चयनित खिलाड़ियों को शुभकामनायें देकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है.
स्वीमिंग और कोच की हो आवश्यकता
मुकुल पिता मनोज पंचबुद्धे के साथ बजरंग घाट जाता था, जहां उसने पीट पर तैराना सीखा. वहीं अन्या, शौकिया स्वीमिंग करने बजरंग घाट आती थी लेकिन उसने इसे काम्पिटिशन में लेकर मेहनत की और आज वह चयनित हो गई है. अभिभावकों की मानें तो मुख्यालय में स्वीमिंग पुल की घोषणा के वर्षो बाद भी वह नहीं बना और बिना स्वीमिंग पुल और कोच के प्रतिभागी आगे नहीं आ रहे हैं. अभिभावकों की मानें तो जिले में स्वीमिंग को लेकर बच्चों काफी है, जो प्रदेश, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बेहतर कर सकते हैं. नदी में पानी के बहाव के साथ तैराकी और काम्पिटिशन में स्वीमिंग पुल के पानी में तैराकी मंे अंतर है, जहां उर्जा की जरूरत है, जो नदी के बहाव में तैरते हुए संभव नहीं है. ऐसे में खिलाड़ियांे के लिए स्वीमिंग पुल और उन्हें सीखाने कोच जरूरी है. जिसके लिए नेताओं को प्रयास करना चाहिये और समाज को उसके लिए आगे आना चाहिये.