मुस्तुफा रजा खान नूरी का 42 वां उर्स आज

बालाघाट. शहजादा-ए-आला हजरत, ताजदारे अहले सुन्नत, मुस्तुफा रजा खान नूरी का सालाना 42 वां उर्स, पूरी अकीदत के साथ आज 12 अगस्त को मनाया जायेगा.  

बालाघाट शहर की सभी मस्जिदों और मदरसों तथा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में उर्स के अवसर पर कुरान खानी, दरूद खानी, नातिया प्रोग्राम और लंगर सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित होंगे. इसी कड़ी में जामा मस्जिद में बाद नमाज मगरिब, दरूद खानी और तकरीर का आयोजन किया गया है. जिसमें जामा मस्जिद इमाम जाहिद रजा कादरी, मुस्तुफा रजा खान नूरी की जीवनी पर विस्तार से तकरीर करंेगे.

गौरतलब हो कि मुस्तुफा रजा खान नूरी की यौमे पैदाईश, 1892 में बरेली शरीफ में हुई थी और आपका विसाल माहे मोहर्रम की चौदहवीं शब, में हुआ था. जिनका मजारे मुबारक, बरेली शरीफ में है. वे, पूरी दुनिया में हुजुर मुफ्ती आजाम हिंद के नाम से मशहुर है.  

रजा-एक्शन कमेटी के प्रदेश अध्यक्ष हाजी शोएब खान ने बताया कि जिस तरह गौसे-आजम और ख्वाजा गरीब नवाज ने शहीदे आजम, हजरत इमाम हुसैन के बताये रास्ते पर चलने की तालिम दी और यजिद के भटके हुए रास्ते से बचने का हुक्म दिया और प्यार, मोहब्बत, अमन-शांति, भाईचारे का संदेश देती सूफीवादी विचारधारा को पूरी दुनिया में पहुंचाने का काम किया. इसी सूफीवादी मिशन को आला हजरत इमाम अहमद रजा खान ने आगे बढ़ाते हुए अपने साहित्य और उपदेशों को कलमबंद करके सूफीवाद को नई पहचान मसलके आला हजरात के रूप में दी. मुस्तुफा रजा खान नूरी, इसी सूफीवादी मिशन पर पूरी जिंदगी कायम रहे और अपने करोड़ो अनुयायियांे को शक्ति के साथ कायम रहने की शिक्षा दी. जिन्होने अपने जीवनकाल में सैकड़ो साहित्य, प्रवचनों और उपदेशों से सूफीवाद और दीने इस्लाम की वास्तविकता की पहचान कराकर मुस्लिम धर्मावलंबियांे पर अहसान किया, जो रहती दुनिया तक कायम रहेगा.


Web Title : MUSTUFA RAZA KHAN NOORIS 42ND URS TODAY