राम की मर्यादा और रसूल की सलाहियत पेश करें, अयोध्या फैसले पर विशेष (मुस्ताअली बोहरा)

15 वीं सदी से चले आ रहे अयोध्या मामले का आखिरकार फैसला आ ही गया. सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित जमीन रामजन्म भूमि न्यास को दे दी, इसके साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को भी न्यास बनाने को कहा है, यही न्यास नए राम मंदिर निर्माण की रूप रेखा बनाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्णय आस्था और विश्वास नहीं बल्कि सबूतों के आधार पर दिया है. जो फैसला आया उससे कहा जा सकता है कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को पूरी गंभीरता से लिया है. यानि तुम्हारी भी जय-जय और हमारी भी जय-जय. हम सभी को कोर्ट के निर्णय का सम्मान करना चाहिए. साथ ही ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ये देश हमारा है और यहां रहने वाले लोग भी. चूंकि, ये भगवान श्री राम के जन्म स्थान से जुडे मंदिर का मामला था इसलिए आस्था ज्यादा गहरी थी फिर वक्त के साथ इस आस्था के साथ राजनीति भी जुड गई और मामला गंभीर हो गया वरना देश के कई मंदिर और मस्जिदें ऐसी हैं जहां पूजा और नमाज के लिए कम ही लोग पहुंचते हैं. मस्जिदों में जुमा की नमाज में तो भीड दिखती है लेकिन दूसरे दिनों में ये भीड नजर नहीं आती. इसी तरह फजर की नमाज में तो गिने चुने लोग की ज्यादातर मस्जिदों में दिखते हैं. कई मंदिरों के भी यही हाल हैं, सुबह और शाम की आरती में ऐसा लगता है जैसा सारा दारोमदार सिर्फ पुजारी का ही है. धर्म गं्रथों में कहा गया है कण-कण में भगवान है, ऐसी कौन सी जगह है जहां अल्लाह नहीं है. खैर, अब वक्त है कि हम मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम की मर्यादा और अल्लाह के प्यारे नबी की सलाहियत का अहतराम करें. दोनों के जीवन की मिसाल दुनिया भर में कहीं और देखने नहीं मिलेगी.  

- जय सियाराम से हो गए जय-जय श्री राम

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम को आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई के रूप में जाना जाता है. श्री राम तो वो थे जिन्होंने पिता के आदेश का पालन करते हुए चौदह साल का वनवास भोगा, श्री राम वो थे जिन्होंने रावण का वध कर लोगों की रक्षा की, जिन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए, जिन्होंने अहिल्या का उदधार किया. आज भी कई कस्बों में लोग उसी तरह एक दूसरे से जय सियाराम का संबोधन करते हैं जैसे कई लोग नमस्ते करते हैं. जय सियाराम का संबोधन मन को सुकुन देने वाला होता है लेकिन बदलते वक्त और माहौल के साथ यही संबोधन जय सियाराम से जय-जय श्री राम हो गया. जय-जय श्री राम भी ऐसा जो ऐसे शौर्य का प्रतीक हो गया जो दूसरे को कमतर या कमजोर लगे. हर्ज तो जय-जय श्री राम के उदघोष से भी नहीं है लेकिन मर्यादा ऐसी हो जो जैसी श्री राम में थी.

- नबी के साथ नबी की भी मानें

अल्लाह के प्यारे रसूल हजरत मोहम्मद साहब का जीवन सादगीपूर्ण रहा. अल्लाह के रसूल के जरिए रोजे और नमाज अता की गई. रोजे रखने के पीछे यही मकसद है कि दूसरे की भूख और प्यास का अहसास किया जा सके. नमाज का मकसद है अल्लाह के सामने कोई अमीर कोई गरीब, कोई उंचा या कोई नींचा नहीं, सब बराबर हैं. नबी साहब ने अपने संदेशों में साफ कहा है कि यदि आपका पडोसी भूखा है पहले उसे भोजन दो. गरीब और बीमारों की सेवा करों. अपने मजहब के साथ दूसरे के मजहब का भी सम्मान करो. नबी साहब का किरदार तो ऐसा था कि जो उन पर कचरा फेकता था उसके बीमार पड जाने के बाद वे उसे देखने उसके घर गए और उसकी तीमारदारी की. उन्होंने कभी अकेले भोजन नहीं किया अलबत्ता दूसरे को बुलाकर उनके साथ खाना खाते थे. नबी साहब अपने जूते भी खुद सीलते थे. अपने आखरी वक्त में नबी साहब ने अपनी पूरी दौलत गरीबों में तकसीम कर दी थी. ये नबी साहब का किरदार ही है जो आज दुनिया भर में उनके मानने वाले हैं. आज भी उनका सादगीपूर्ण जीवन और उनके संदेश प्रासंगिक हैं.

अयोध्या: अजान भी और राम कथा भी

अयोध्या को लेकर चाहे पूरे देश में गरमा गरमी रहती हो लेकिन यहां के हालात वैसे नहीं होते जैसे कतिपय राजनेताओं द्वारा बताए जाते हैं. यहां एक ही गली में मस्जिद की अजान सुनाई देती है तो दूसरे घर में राम कथा होते रहती है. यहां हिंदू या मुसलमान हो, आपस में कोई भेदभाव नहीं है. टेढ़ी बाजार से आगे अयोध्या कोतवाली के बगल में स्थित एक संकरी गली में धार्मिक फोटो हाउस है. यहां राम दरबार समेत सभी भगवान की तस्वीरें मिलती हैं. ये दुकान महबूब अली की है जिसे वह पिछले करीब सवा दशक से चला रहे हैं. मंदिर-मस्जिद मुद्दे पर लोगों का कहना है कि बाहर ज्यादा डर बनाया जाता है. हमसे बाहर के व्यापारी फोन करके पूछते हैं कि हम आएं कि या नहीं? हम उन्हें कहते हैं कि आप आराम से आइए और सामान बेचिए. यहां लोग मिल-जुलकर रहते हैं. इतना ही नहीं नई पीढी के कई युवा हैं जो आपस में अच्छे दोस्त हैं और एक साथ व्यवसाय करते हैं. लोगों का कहना है कि धर्म के नाम पर सिर्फ सियासी रोटियां सेकीं जा रही हैं.  

बहरहाल, भारत मिली जुली संस्कृति का देश है. जितने मजहब, जितनी भाषा, जितनी बोलियां, जितने पारंपरिक तीज-त्यौहार यहां हैं उतने दुनिया के किसी भी देश नहीं. इस देश को एक सूत्र में पिरोए रखने की जिम्मेदारी भी हमारी ही है. हम अपने अधिकारों के लिए तो सडक पर उतर आते हैं लेकिन कर्तव्यों को बिसार देते हैं. आज जरूरत है कि हम भगवान श्री राम की मर्यादा और नबी साहब की सलाहियत का अहतराम करें और ऐसी मिसाल पेश करें की दुनिया भारत को विश्व गुरू माने.   

Web Title : OFFER RAMS DECORUM AND THE ADVICE OF THE MESSENGER, SPECIAL ON THE AYODHYA VERDICT (MUSTALI BOHRA)