दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर, दल बदलते ही पार्टी पर बड़ा विश्वास, निर्दलीय और तीसरा दल बिगाड़ सकते है जीत के समीकरण

बालाघाट. जिले के सभी 06 विधानसभा चुनावो में एक-दो ही ऐसे प्रत्याशी है, जो पहली बार चुनाव लड़ रहे है जबकि चुनावी मैदान में राजनीति के दिग्गज, एक बार फिर अपना भाग्य अजमा रहे है, जिनको राजनीति का लंबा अनुभव है. जिनकी प्रतिष्ठा दांव पर है, यदि उनकी हार होती है तो निश्चित ही उनका राजनीतिक भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. वहीं इस चुनाव में समय को देखते हुए पाला बदलने वाले नेताओं के लिए, अब पार्टी विश्सनीय हो गई है, जबकि कल तक वह पानी पी-पीकर उसकी ही नीतियों की अलोचना किए करते थे. चुनाव में दिग्गजों का खेल निर्दलीय और अन्य दलांे के प्रत्याशी बिगाड़ सकते है, यदि उंच-नीच होती है तो निश्चित ही इसमें उनका बड़ा योगदान होगा.

जिले की मुख्यालय की सीट बालाघाट की बात करें तो यहां 7 बार के विधायक और दो बार के सांसद गौरीशंकर बिसेन, चुनाव मैदान में हैं. कहा जाता है कि यह उनका अंतिम चुनाव है लेकिन कुर्सी की लालसा छोड़ी नहीं जाती, जिससे यह अभी संभावित ही है कि वह आखिरी बार चुनाव लड़ रहे है. जिनका मुकाबला कांग्रेस की प्रत्याशी अनुभा मुंजारे से है. पूर्व नपाध्यक्ष और बीते कई विधानसभा चुनाव में भाजपा की बड़ी प्रतिद्वंदी रही, अनुभा के लिए भी यह चुनाव करो या मरो जैसा है. कटंगी विधानसभा, यहां कांग्रेस के प्रत्याशी बोधसिंह भगत, पूर्व विधायक और सांसद रह चुके है, जिन्होंने भाजपा की टिकिट नहीं मिलने पर तत्काल ही पाला बदला और कांग्रेस में चले गए. जिनके लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा वाला चुनाव है, जिनके सामने भाजपा प्रत्याशी है. जो पहली बार चुनाव लड़ रहे है. परसवाड़ा विधानसभा में भाजपा, कांग्रेस और गोंगपा से दिग्गज मैदान में है. भाजपा से रामकिशोर कावरे, कांग्रेस से मधु भगत और गोंगपा से पूर्व सांसद कंकर मुंजारे को लंबा राजनीतिक अनुभव है और सभी तीसरा, चौथा और कई चुनाव लड़ चुके है. जिन्हंे भी इस चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा का डर सता रहा है. खासकर कंकर मुंजारे के राजनीतिक भविष्य के लिए यह अंतिम चुनाव है. बैहर विधानसभा में नेताम और उइके परिवार के बीच चुनावी बेटल पुरानी है. दोनो ही प्रत्याशियों को भी राजनीति का लंबा अनुभव है और दोनो ही दिग्गजो के लिए यह चुनाव भी राजनीतिक रूप से आर या पार जैसा है. लांजी में राजनीतिक परिवेश में पढ़ी बढ़ी और दो बार की विधायक सुश्री हिना कावरे के सामने पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहे राजकुमार कर्राहे, मैदान में है. जिनसे उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है. हीना के लिए यह चुनाव भी प्रतिष्ठा बचाने वाला चुनाव है. वारासिवनी विधानसभा की बात करें तो गुरू और चेले के बीच यहां मुख्य मुकाबला है. भाजपा को जीत की निशानी मान रहे निर्दलीय पूर्व विधायक ने ऐन चुनाव के पहले भाजपा ज्वाईन की और अब प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में है. चूंकि यह परंपरागत रूप से कांग्रेस विचारधारा वाली सीट रही है, जिससे इस बार उन्हें अपने चेले कांग्रेस प्रत्याशी विवेक विक्की पटेल से करारी टक्कर मिल रही हैं. भाजपा प्रत्याशी के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा वाला है, यहां उन्हें मतदाताओं से ज्यादा जिस पार्टी में है, उनके लोगों से ही नकारात्मक वेव मिल रही है. कल तो जिस पार्टी को खराब और उसकी रीति-नीति को गलत ठहराते रहे है, आज वे उसी पार्टी के कसीदे गढ़ रहे है.  फिलहाल यह तो आगामी 03 दिसंबर को तय हो जाएगा कि किस दिग्गज की प्रतिष्ठा बची रही और किसकी प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा है, लेकिन इससे पूर्व दिग्गजों को चुनावी मैदान में अपने से कम अनुभवी लोगों से कड़ी टक्कर जरूर मिल रही है.  


Web Title : THE PRESTIGE OF VETERANS IS AT STAKE, AS SOON AS THE PARTY CHANGES, THERE IS A BIG TRUST IN THE PARTY, INDEPENDENTS AND THIRD PARTIES CAN SPOIL THE WINNING EQUATION.