मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं, रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के पावन अवसर पर विशेष

आलेख-मुस्ताअली बोहरा, अधिवक्ता एवं लेखक, भोपाल

         राम ही तो करुणा में हैं, शान्ति में राम हैं, राम ही हैं एकता में, प्रगती में राम हैं! 

राम बस भक्तों नहीं, शत्रु की भी चिंतन में हैं, देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं!!

राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं, राम तो घर-घर में हैं, राम हर आंगन में हैं, मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं!!!

प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में भव्य मंदिर बन गया और लंबे इंतेजार के बाद साल 2024 में यहां रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का सुखद पल आया. श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ था लेकिन ये भी अटल सत्य है कि श्री राम तो कण-कण में हैं, हर सनातनी के मन में हैं. श्री राम के जीवन और उनके आदर्शों को शब्दों में पिरोना असंभव है. श्रीराम के जीवन आदर्श, उनकी मर्यादा, उनके प्रेम, उनके धैर्य, उनके पराक्रम, उनके आचरण को किसी मजहबी और किसी भौगोलिक सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता. सनातन धर्म में श्रीराम को भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है. मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम को आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श भाई के रूप में जाना जाता है. श्री राम तो वो थे, जिन्होंने पिता के आदेश का पालन करते हुए चौदह साल का वनवास भोगा, श्री राम वो थे, जिन्होंने रावण का वध कर असुरों से लोगों की रक्षा की, जिन्होंने शबरी के झूठे बेर खाए, जिन्होंने अहिल्या का उद्धार किया. प्रभु श्रीराम सर्वशक्तिशाली होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं. यही वो वजह है कि जय सियाराम का संबोधन खासों आम की जुबान पर रहता है. जय सियाराम का संबोधन मन को सुकुन देने वाला होता है. अभी तक श्रीराम को लेकर जितने भी भजन या गीत लिखे गए हैं वे सभी अपने आप में परिपूर्ण हैं लेकिन मशहूर गीतकार जावेद अख्तर के लिखे इस गीत राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं.. . . . ने बता और जता दिया कि रामजी तो हर किसी के मन में है.

महाकाव्य श्रीरामचरित मानस ने हर सनातनी के दिल में प्रभु राम की महिमा जज्ब कर दी है. 16 वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदासजी ने अवधि भाषा में इसे रचा था. दोहों, चौपाइयों, सोरठों और छंद के जरिए प्रभु की महिमा का बखान किया है. श्रीरामचरितमानस की रचना में 2 वर्ष 7 माह 26 दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् 1633 यानि 1576 ईस्वी के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था. इसी तरह महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में भगवान श्रीराम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है. वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण संस्कृत महाकाव्य है. रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है. विद्वानों के अनुसार इसका रचनाकाल 7 वीं से 4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है. कुछ विद्वान इसे तीसरी शताब्दी की रचना तो कुछ इसे 600 ईपू से पहले का लिखा मानते हैं. इसके पीछे तर्क यह है कि महाभारत, बौद्ध धर्म के बारे में मौन है जबकि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परंपराओं का वर्णन है. महाभारत, रामायण के पश्चात रचित है, अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये. भाषा-शैली के अनुसार भी रामायण, पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये.

सनातनियों के अलावा जैनियों के लिए भी बहुत खास है अयोध्या 

अयोध्या.. . . जिसका मतलब है जिसके साथ युद्ध करना असंभव हो या जिसे हराया नहीं जा सकता. श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या का इतिहास भी खासा गहरा है. वो अयोध्या जहां न सिर्फ भगवान श्रीराम का जन्म हुआ बल्कि अयोध्या में ही सरयू नदी के गुप्तार घाट में श्रीराम ने जलसमाधि ली थी. तीर्थंकर आदिनाथ के चार अन्य तीर्थंकरों ने भी यहीं जन्म लिया, वो अयोध्या जो बुद्ध देव की तपस्या स्थली रही, वो अयोध्या जिसे बादशाह अकबर ने अवध सूबे की राजधानी बनाया. वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या, और इसकी सम्पन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है. अथर्ववेद में यौगिक प्रतीक के रूप में अयोध्या का उल्लेख है.

स्कन्दपुराण के अनुसार सरयू के तट पर अयोध्या नगरी है. ब्रह्माजी के मानस पुत्र मनु से अयोध्या और प्रतिष्ठानपुर के इतिहास का उद्गम जुड़ा है ऐसा माना जाता है. प्रतिष्ठानपुर और यहां के चंद्रवंशी शासकों की स्थापना मनु के पुत्र ऐल से जुड़ी है, जिसे शिव के श्राप ने इला बना दिया था. उसी प्रकार अयोध्या और उसका सूर्यवंश मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से शुरू हुआ था. ग्रह मंजरी और अन्य प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इनकी स्थापना का काल ई. पू. 2200 के आसपास माना जाता है. इस वंश में राजा दशरथ 63 वें शासक रहे हैं. इसी तरह जैन परंपरा के अनुसार भी 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे. इन 24 तीर्थंकरों में से तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव जी) के साथ चार अन्य तीर्थंकरों का जन्मस्थान भी अयोध्या ही है. तीर्थंकर ऋषभनाथ जी, दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी, चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी, पांचवे तीर्थंकर सुमतिनाथ जी और चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ जी का जन्म यहीं हुआ. बौद्ध मान्यताओं के अनुसार बुद्ध देव ने अयोध्या अथवा साकेत में 16 वर्षों तक निवास किया था. एक तरह से ये जैन और बौद्धों का भी पवित्र धार्मिक स्थान था. विख्यात संत रामानंद जी का जन्म भले ही प्रयाग क्षेत्र में हुआ हो लेकिन रामानंदी संप्रदाय का मुख्य केंद्र अयोध्या ही रहा.

रामायण से लेकर आईन-ए-अकबरी तक 

अयोध्या पहले कौशल जनपद की राजधानी थी. शोध के अनुसार भगवान श्री राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व हुआ था. वाल्मीकि कृत रामायण के बालकाण्ड में अयोध्या के 12 योजन यानि करीब 144 किलोमीटर लंबी और तीन योजन यानि करीब 36 किलोमीटर चौड़ी होने का उल्लेख है. सातवीं सदी के चीनी खोजी यात्री ह्वेन सांग के मुताबिक इसकी परिधि 16 ली थी, एक चीनी ली 1. 6 मील के बराबर मानी जाती थी. आईन-ए-अकबरी में भी इस नगर का जिक्र है, इसकी लंबाई 148 कोस तथा चौड़ाई 32 कोस उल्लेखित है. कोशल, कपिलवस्तु, वैशाली और मिथिला आदि में अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश के शासकों ने ही राज्य कायम किया था. त्रेता युग से लेकर द्वापर काल और उसके बाद तक अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं का जिक्र ग्रंथों में मिलता है. बृहद्रथ को इसी वंश का माना जाता है जिसे महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु ने पराजित किया था. प्राचीन गं्रथों के अनुसार लव ने श्रावस्ती बसाई. फिर यह नगर मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा. अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की.  

शकों से लकर बाबर तक, अकबर के राज में थी राजधानी  

जब शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शर्कियों के अधीन हो गया. 14 वीं सदी में महमूद शाह शक शासक के रूप में थे. 15 वीं सदी में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की. बादशाह अकबर के राज में अवध क्षेत्र का महत्व काफी बढ गया, ये इलाका व्यापारिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया. चूंकि, गंगा के उत्तरी भाग को पूर्वी क्षेत्रों और दिल्ली-आगरा को सुदूर बंगाल से जोड़ने वाला रास्ता यहीं से होकर गुजरता था लिहाजा अकबर ने जब अपने साम्राज्य को 12 सूबों में विभक्त किया, तब उसने अवध का सूबा बनाया था और अयोध्या ही उसकी राजधानी थी. औरंगजेब की मौत के बाद जब कई छोटे-छोटे राज्य उभरने लगे, तब अवध भी स्वतंत्र राज्य बन गया. 17 वीं सदी में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अवध का सूबा अपने शिया दीवान-वजीर सआदत खां के हवाले कर दिया था. अवध सूबे के दीवान दयाशंकर थे, जो यहां का प्रबंधन संभालते थे. इसके बाद उसका दामाद मंसूर अली सफदरजंग अवध का शासक बना. इसी दौरान उसका प्रांतीय दीवान इटावा का नवल राय था. ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के जल समाधि लेने के बाद अयोध्या कुछ समय के लिए उजाड़ सी हो गई थी. भगवान श्री राम के पु़त्र कुश ने अयोध्या का पुनर्निमार्ण कराया. इसके बाद सूर्यवंश की 44 पीढ़ियों और आखरी राजा महाराजा बृहद्धल तक अयोध्या का अस्तित्व रहा. महाराजा बृहद्धल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी. महाभारत युद्ध के बाद अयोध्या उजाड़ सी हो गई थी. इतिहासकारों के मुताबिक सूर्यवंशी कुल के 123 राजा हुए. इनमें से 30 ने महाभारत के बाद अयोध्या पर राज किया. ये भी माना जाता है कि अयोध्या के पहले 11 सूर्यवंशी राजा थे, इनमें से श्रीराम 64 वें राजा हुए. ये भी कहा जाता है कि ईसा के करीब सौ साल पहले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य एक दिन शिकार करते हुए अयोध्या पहुंच गए. यहां उन्हें चमत्कारिक अनुभूति हुई. उन्हें योगी और संतों से पता चला कि ये श्रीराम की अयोध्या है तब राजा विक्रमादित्य ने यहां एक भव्य मंदिर, सरोवर और महल आदि बनवाए. उन्होंने यहां काले रंग की कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर बनवाया था. राजा विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने भी इस मंदिर की देखरेख की. शुंग वंश के शासक पुष्यमित्र ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. पुष्यमित्र का एक शिलालेख अयोध्या से मिला था, जिसमें उसे सेनापति कहा गया है और भी कुछ शिलालेखों से पता चलता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और उसके बाद अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी. गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार जिक्र किया है. शोधों के अनुसार चीनी भिक्षु फाहियान ने यहां बौद्ध मठों का रिकॉर्ड देखा. यहां पर 7 वीं शताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था. उसके मुताबिक यहां 20 बौद्ध मंदिर थे और तीन हजार भिक्षु रहते थे और यहां हिन्दुओं का भव्य मंदिर भी था. जिसे राम मंदिर कहा जाता था. तीर्थ यात्री जुआन झांग ने दर्ज किया है कि यहां करीब सैकड़ा भर बौद्ध मठ थे. इसके बाद ईसा की 11 वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जयचंद आया तो उसने मंदिर पर राजा विक्रमादित्य के शिलालेख को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया. पानीपत युद्ध के बाद जयचंद की भी मौत हो गई. इसके बाद आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ अयोध्या में भी लूटपाट और तोड़फोड़ की.  

विलियम फेंच और एडवर्ड बालफोर ने किया है ज़िक्र 

14 वीं शताब्दी तक अयोध्या में राम मंदिर बचा रहा. ऐसा कहा जाता है कि सिंकदर लोदी के शासनकाल में भी ये मंदिर मौजूद था. 1527-28 में अयोध्या में स्थित राम मंदिर को तोड़ दिया गया. कहा जाता है कि बाबर के एक सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में स्थित इस मंदिर को तोड़ा था. मीर बाकी की कब्र भी अयोध्या से लगे गांव सहनवा में है. मीर बाकी असली नाम बाकी ताशकंदी था और वह उज्बेकिस्तान का रहने वाला था. बाबर ने उसे अवध का दायित्व सौंपा था. बाबरनामा के अनुसार 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान बाबर ने यहां मस्जिद बनाने का आदेश दिया था. बाबरनामा और अकबरनामा में धार्मिक स्थल को तोड़कर मस्जिद बनाने का जिक्र नहीं है.  

इतिहासकारों के अपने-अपने तर्क

नसैर बहादुर शाही की किताब साहिफा-ए-चहल में बहादुर शाह आलमगीर की बेटी और औरंगजेब की पौत्री ने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर और मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का जिक्र किया है. 1608 ईस्वी में अंग्रेज व्यापारी विलियम फंेच ने अपनी डायरी में लिखा था कि अयोध्या के रामकोट में रानीचंद के महल और घरों के खंडहर भी हैं. उनकी डायरी में बाबरी मस्जिद का उल्लेख नहीं था लेकिन रामकोट के मंदिर और खंडहर में श्रद्धालुओं के आने जाने और पूजा करने की बात लिखी थी. एडवर्ड बालफोर रने अपनी कितान इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडिया एंड ऑफ इस्टर्न एंड साउथर्न एशिया 1858 में अयोध्या, मथुरा और काशी का उल्लेख किया है. हालांकि, मुस्लिम विद्वान इन दस्तावेजों से इत्तेफाक नहीं रखते. कई मुस्लिम विद्वानों का तर्क है कि यदि रामजन्मभूमि को तोड़कर मस्जिद बनाई गई होती तो गोस्वामी तुलसीदास इसका जिक्र जरूर करते. विदित हो कि जब रामजन्मभूमि प्रकरण की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी तो संत रामभद्राचार्य ने गोस्वामी तुलसीदास की तुलसी दोहा शतक नाम से एक किताब पेश की थी जिसमें मंदिर होने का उल्लेख है. मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी या नहीं, इस पर इतिहासकारों ने भी अपनी राय दी थी. 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने हिंदु और मुस्लिम पक्षों से अपने-अपने सबूत आदान-प्रदान करने के लिए कहा था ताकि समझौते पर आगे बढ़ा जा सके. बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का प्रतिनिधित्व करने वाले रामशरण शर्मा, द्विजेन्द्र नारायण झा, एम. अख्तर अली और सूरज भान आदि ने सरकार को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिदः ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन नाम से रिपोर्ट सौंपी थी. जिसमें इस दावे को खारिज किया गया था कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. इतिहासकार डीएन झा ने ऐतिहासिक ग्रंथों और साक्ष्यों के आधार पर ये भी कहा था कि स्कंद पुराण में घग्गर नदी और सरयू नदी के संगम पर स्वर्गद्वार नामक स्थान से श्रीराम के स्वर्गलोक गमन के बारे में करीब सौ छंदों में जिक्र है. जबकि जन्मस्थान के बारे में दस श्लोकों में ही लिखा है. इससे माना जा सकता है कि श्रीराम के जन्मस्थान से ज्यादा वो स्थान महत्वपूर्ण था, जहां वे स्वर्ग गए थे. झा ने ये भी बताया था कि भट्ट लक्ष्मीधर द्वारा लिखित 11 वीं शताब्दी के ग्रंथ कृत्यकल्पतरू में तीर्थ स्थलों की सूची दी है. भट्ट लक्ष्मीधर गढ़वाल साम्राज्य में मंत्री थें जिसका उस वक्त अयोध्या पर शासन भी था. उन्होंने ग्रंथ कृत्यकल्पतरू के एक खंड तीर्थ विवेचन कांड में तीर्थ यात्रा के केन्द्र के तौर पर अयोध्या का उल्लेख नहीं किया है. डीएन झा ने रामचरितमानस का जिक्र करते हुए ये भी कहा था कि श्रीराम और अयोध्या के बारे में तो लिखा है लेकिन राम मंदिर तोड़े जाने का जिक्र नहीं है. अन्य पुरातात्विक साक्ष्यों से ये भी पता चलता है कि पूरे उत्तर भारत में 17 वीं शताब्दी के आखिर से लेकर 18 वीं शताब्दी के शुरू तक विशेष रूप से श्रीराम को समर्पित कोई मंदिर नहीं था. 12 वीं शताब्दी के श्रीराम के दो-तीन मंदिर मध्यप्रदेश में हैं लेकिन उत्तरप्रदेश नहीं है ना ही बिहार में और ना ही उड़ीसा में. विष्णु स्मृति में भी तीसरी-चौथी शताब्दी के शुरू में करीब आधा सैकड़ा तीर्थ स्थलों की सूची दी गई है लेकिन इसमें अयोध्या का नाम नहीं है. झा का कहना था कि यदि अयोध्या में कोई इतना महत्वपूर्ण मंदिर था तो मस्जिद बनाए जाने के पहले इसे साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य में उल्लेख होना चाहिए था. इतिहासकार डीएन झा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि स्कंद पुराण की रचना 14 वीं शताब्दी से लेकर 18 वीं शताब्दी तक चली. इसके अंतिम चरण में में ही जन्म स्थान का उल्लेख किया गया है. उनका कहना था कि उत्तरप्रदेश के लखनउ, इलाहाबाद और फैजाबाद में कैटलॉग है और किसी में भी श्रीराम का उल्लेख नहीं है.  

 सन 1992 में इतिहासकार श्याम नारायण पांडे की लिखी किताब एंसिंट जिऑग्राफी ऑफ अयोध्या यानि अयोध्या का प्राचीन-भूगोल प्रकाशित हुई थी. इस किताब में श्रीराम का जन्मस्थान वर्तमान अफगानिस्तान के शहर हेरात को बताया गया है. इस किताब के इंडेक्स में तीन टाइटल हैं अयोध्या इन वेस्ट बंगाल, अयोध्या इन नेपाल और अयोध्या इन थाईलैंड एंड लाओस. सन 1997 में श्री पांडे ने बेंगलुरू में आयोजित इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में अपनी एक थ्योरी पेश की थी. जिसका शीर्षक था ऐतिहासिक राम भगवान राम से अलग थे. श्री पांडे ने वैदिक ग्रंथों का हवाला देते हुए और उसे पुरातात्विक खोजों से जोड़कर अपनी बात रखी थी. सन 2000 में राजेश कोचर ने अपनी किताब द वैदिक पीपलः देयर हिस्ट्री एंड जियोग्राफी में श्री राम के जन्मस्थान को अफगानिस्तान में बताया था. कोचर का तर्क था कि अफगानिस्तान की हैरात नदी ही मूल सरयू है और अयोध्या इसी के तट पर स्थित थी. श्रीराम की वंशावली के अध्ययन के आधार पर कोचर ने यह भी दावा किया कि श्रीराम के पूर्वज पश्चिमी अफगानिस्तान-पूर्वी ईरान क्षेत्र में रहते थे. 1998 में पुरातत्वविद कृष्ण राव ने हरियाणाा में स्थित हड़प्पाकालीन स्थल बनावली को श्रीराम का जन्मस्थान बताया था. श्री राव ने प्रभु राम की पहचान सुमेरियन राजा रिम-सिन प्रथम और रावण की पहचान बेबीलोन के राजा हम्मुराबी से की थी. उन्होंने ये भी कहा था कि सिंधु मोहरों पर रिम सिन यानि राम सेना और रवानी दामा शब्द लिखे पाए गए थे. 2015 में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अब्दुल रहीम कुरैशी ने फैक्ट्स ऑफ अयोध्या एपिसोड नाम से पेपर प्रकाशित किया था. उन्होंने तर्क दिया था कि श्रीराम का जन्म पाकिस्तान के रहमान ढेरी में हुआ था. श्री कुरैशी ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधिकारी जस्सू राम के लेखन का हवाला दिया था. उन्होंने तर्क दिया कि 11 वीं शताब्दी में प्राचीन शहर साकेत का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया था.         

नवाब ने दिया था हिन्दुओं के हक में फैसला

इतिहासकारों के मुताबिक इसी मंसूर अली सफदरजंग के समय में अयोध्या के निवासियों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली. इसके बाद उसका पुत्र शुजा-उद्दौलाह अवध का नवाब-वजीर हुआ और उसने अयोध्या से 3 मील पश्चिम में फैजाबाद नगर बसाया. शुजा-उद्दौलाह की मौत के बाद फैजाबाद उनकी विधवा बहू बेगम की जागीर के रूप में रही और उनके पुत्र आसफ-उद्दौल्लाह ने नया नगर लखनऊ बसाया. आसफ ने लखनउ को अपनी राजधानी बनाया. नवाब वजीर वाजिद अली शाह अवध के आखरी नवाब-वजीर थे. उसके बाद उनकी बेगम हजरत महल और उनका पुत्र बिलकिस बद्र ब्रितानिया हुकमरानों लड़ते रहे लेकिन अवध को उनसे मुक्त नहीं करा पाए. यहां ये बताना मौजू होगा कि वाजिद अली शाह के समय हनुमान गढी में सांप्रदायिक विवाद उभरा था और नवाब वाजिद अली शाह ने अंततः हिन्दुओं के हक में फैसला दिया था. इस निष्पक्ष फैसले पर तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने मुबारकबाद भी प्रेषित की थी.  

नवाब मंसूर अली ने कराया था हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार 

कहा जाता है कि हनुमान जी यहां एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे. हनुमान जी को रहने के लिए यही स्थान दिया गया था. ऐसा माना जाता है कि यहां हनुमान जी हमेशा ही वास करते हैं. इसलिए अयोध्या आकर भगवान राम के दर्शन से पहले भक्त हनुमान जी के दर्शन करते हैं. यहां का सबसे प्रमुख हनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है. अयोध्या में हनुमान जी राजा के रूप में पूजे जाते हैं, इसलिए यहां जो आता है सबसे पहले हनुमंतलला के दरबार में हाजिरी लगाता है. यह मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर स्थित है. प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी को ये अधिकार दिया था कि जो भी भक्त मेरे दर्शनों के लिए अयोध्या आएगा उसे पहले तुम्हारा दर्शन पूजन करना होगा. यहां आज भी छोटी दीपावली के दिन आधी रात को संकटमोचन का जन्म दिवस मनाया जाता है. अयोध्या में एक टीले पर स्थित होने के कारण मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढियां चढ़नी पड़ती हैं. इसके बाद पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच की प्रतिमा के दर्शन होते हैं, जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है. मुख्य मंदिर में बाल हनुमान के साथ अंजनी माता की प्रतिमा है. मंदिर परिसर में मां अंजनी एवं बाल हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमान जी, अपनी मां अंजनी की गोद में बालक के रूप में विराजमान हैं.

इस मंदिर के निर्माण के पीछे की एक कथा प्रचलित है. कहा जाता है कि सुल्तान मंसूर अली अवध का नवाब था. एक बार उसका इकलौता बेटा गंभीर रूप से बीमार पड़ गया. जान बचने की उम्मीद जाती रही तो सुल्तान ने संकटमोचक हनुमान जी के समक्ष प्रार्थना की. हनुमानजी ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का ध्यान किया और आशीर्वाद दिया जिसके बाद सुल्तान के बेटे की जान बच गई. अपने इकलौते बेटे की जान बचने पर अवध के नवाब मंसूर अली ने ना केवल हनुमान गढ़ी मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया बल्कि ताम्रपत्र पर लिखकर ये घोषणा की कि कभी भी इस मंदिर पर किसी राजा या शासक का कोई अधिकार नहीं रहेगा और न ही यहां के चढ़ावे से कोई कर वसूला जाएगा. उसने 52 बीघा भूमि हनुमान गढ़ी एवं इमली वन के लिए उपलब्ध करवाई. लंका से विजय के प्रतीक रूप में लाए गए निशान भी इसी मंदिर में रखे गए जो आज भी खास मौके पर बाहर निकाले जाते हैं और उनकी पूजा-अर्चना की जाती है.  

पांच तीर्थंकरों की जन्मभूमि 

अयोध्या को पांच जैन तीर्थंकरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है. जहां जिस तीर्थंकर का जन्म हुआ था, वहीं उस तीर्थंकर का मंदिर बना हुआ है. इन मंदिरों को फैजाबाद के नवाब के खजांची केसरी सिंह ने बनवाया था. जैन धर्म के अनेक अनुयायी नियमित रूप से अयोध्या आते रहते हैं.  

सन्तों ने बनाए हैं आश्रम 

अयोध्या संतों की भी साधना-भूमि रही है. यहां के कई आश्रम ऐसे ही संतों के बनाए हुए हैं. इन संतों में स्वामी श्रीरामचरणदास जी महाराज,करुणासिन्धु जी स्वामी, श्री रामप्रसादाचार्य जी, स्वामी श्री युगलानन्यशरण जी, पं. श्री रामवल्लभाशरण जी महाराज, श्री मणिरामदास जी महाराज, स्वामी श्री रघुनाथ दास जी, पं. श्री जानकीवरशरण जी, पं. श्री उमापति त्रिपाठी जी आदि उल्लेखनीय हैं.  

(यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार है. )


Web Title : WHATEVER RAVAN REMOVES FROM HIS MIND, RAMA IS IN HIS MIND, SPECIAL ON THE AUSPICIOUS OCCASION OF CONSECRATION OF RAMLALA.