आज है कार्तिक पूर्णिमा जानिए चार धामों में से एक रामेश्वरम में कैसे मनाई जाती है यह परंपरा

वैसे लोगों का मानना है कि इसे प्रमुखता से उत्तर भारत में मनाया जाता है और ये कार्तिक महीने का अंत होता है (हिंदी कैलेंडर के हिसाब से), लेकिन दक्षिण में इसे लेकर अलग तरह की मान्यताएं हैं और वहां माना जाता है कि ये कार्तिक महीने का 15वां दिन है (कई राज्यों में). खैर जो भी आज आपको बताते हैं कि कैसे चार धाम में से एक रामेश्वरम में इस त्योहार को मनाया जाता है.

निकाली जाती है झांकी 

कार्तिक पूर्णिमा यहां का बड़ा त्योहार है. इस मौके पर यहां शिव और पार्वती की सवारी निकाली जाती है जो सोने के नंदी पर सवार होते हैं. ये भगवान यहीं पर रामेश्वरम मंदिर की परिक्रमा करते हैं. रामेश्वरम का ये उत्सव काफी प्रचलित है. इस दौरान कई टूरिस्ट भी इस जगह पर आते हैं और श्रद्धालुओं की भीड़ भी बहुत ज्यादा होती है. ये रथ यात्रा कई घंटों तक चलती है. इस त्योहार पर कई घरों में दीप भी जलाई जाते हैं.

तालाब में होता है दीपदान 

कार्तिक पूर्णिमा पर शाम को सूरज ढलने के बाद रामेश्वरम मंदिर के पास स्थित रामतलाई तालाब में लोग दीपदान भी करते हैं. यहां दीपदान कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. ये नजारा काफी मनमोहक होता है. हालांकि, ये रिवाज नया है.  

लिंगराज का बड़ा उत्सव

ये रथ यात्रा सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा को ही नहीं निकाली जाती है. ये महा शिवरात्री, दिवाली, मकर संक्रांति पर भी निकाली जाती है. रामेश्वरम मंदिर की मान्यता उतनी ही है जितनी उत्तर में काशी (वाराणसी) विश्वनाथ मंदिर की है. मान्यता है कि जिस तरह जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है उसी तरह से रामेश्वरम में भी भगवान लिंगराज की यात्रा निकाली जाती है जो माना जाता है कि वो सभी जगह यात्रा कर वापस अपने धाम पहुंच रहे हैं.

शिव ही नहीं राम और विष्णु से भी जुड़ी है मान्यता

रामेश्वरम मंदिर हिंदू तीर्थ स्थान है जो चार धाम में से एक है. तमिलनाडु में स्थित रामेश्वरम को रामायण काल से ही महत्व मिला हुआ है. वैसे तो ये मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है और भगवान शिव का मंदिर है, लेकिन यहां विष्णु और राम भक्त भी आते हैं उनके लिए भी ये तीर्थ स्थान है. माना जाता है कि ये वही स्थान है जहां भगवान श्री राम ने रामसेतु बनाने की शुरुआत की थी.

रामेश्वर मतलब भगवान राम. राम जो कि विष्णु के सातवें अवतार थे उन्होंने ही यहां रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी. इस शिवलिंग की पूजा के बाद ही रामसेतु का निर्माण हुआ था और राम अपनी वानर सेना को लेकर लंका जा पाए थे. यही कारण है कि वैष्णव (विष्णु भक्त) और शिव भक्त भी यहां आते हैं.

 समुद्र पर बना 100 साल पुराना पुल

रामेश्वरम असल में सिर्फ तीर्थ स्थान ही नहीं बल्कि बहुत अच्छा टूरिस्ट डेस्टिनेशन भी है. रामेश्वरम का 100 साल पुराना ब्रिज बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है. ये पमबन ब्रिज एक आइलैंड को रामेश्वरम से जोड़ता है और यहां से ट्रेन जाती है. ये ब्रिज 2009 तक भारत का सबसे लंबा समुद्री रेल ब्रिज था.  

Web Title : TODAY IS KARTIK PURNIMA KNOW HOW ONE OF THE FOUR DHAMMAS IS CELEBRATED IN RAMESWARAM THIS TRADITION

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