क्यों दोपहर में बंद हो जाते हैं मंदिर के पट

कहते हैं सुबह जल्दी भगवान की पूजा करने से मन को शांति मिलती है.

जबकि देर से उठने पर दिनभर आलस्य बना रहता है.  

सुबह जल्दी जागना, स्नान, पूजन आदि का सनातन धर्म में बहुत महत्व है.

ऐसा माना जाता है कि दिन के पहले प्रहर में उठकर साधना करना श्रेष्ठ होता है.  

ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 3 से 4 के बीच का समय.  

यह दिन की शुरुआत होती है. ऋषि-मुनियों ने इस मुहूर्त में ही जागने की परंपरा स्थापित की है.  

यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है और आध्यात्मिक शांति के लिए भी.

सूर्योदय के पूर्व का और रात का अंतिम समय होने से ठंडक भी होती है.

नींद से जागने पर ताजगी रहती है और मन एकाग्र करने में अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते.  

जबकि शाम यानी सूर्यास्त के समय को संधिकाल माना जाता है.  

इस समय दिन और रात के बीच का समय होता है.  

इसलिए इसे धार्मिक कामों के लिए अच्छा माना गया है.

इसके विपरीत दोपहर में पूजा इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि दोपहर का समय भगवान के विश्राम का समय होता है.  

उस समय मंदिर के पट बंद हो जाते हैं.  

साथ ही सुबह बारह बजे के बाद पूजन का पूरा फल प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि दोपहर के समय पूजा में मन पूरी तरह एकाग्र नहीं होता है.  

इसलिए सुबह अौर शाम को की गई पूजा का ज्यादा महत्व माना गया है.

Web Title : WHY WE SHUT THE DOORS OF TEMPLE IN AFTERNOON

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