धर्म - पितृ पक्ष की अवधि आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा की तिथि से अमावस्या तक होती है. हिंदू धर्म में इस 16 दिन अवधि को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. पितृ पक्ष की शुरुआत 13 सितंबर से हो चुकी है, जो कि 28 सितंबर तक समाप्त होंगे. पितरों की आत्मा की शांति के लिए 16 दिनों के श्राद्ध कर्म किये जाते हैं. पुराणों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष यानी श्राद्ध के दौरान तक कौओं को काफी सम्मान के साथ देखा जाता है. माना जाता है कि कौवा दिखना पूर्वज का प्रतीक है और पितृ पक्ष के दौरान अगर कौवा दिखता है तो उसे मेहमान के रूप में देखा जाता है. पितर के रूप में आते हैं कौए, गाय और श्वानहिंदू धर्म में कौवे के अलावा गाय और श्वान को भी पितरों का प्रतीक माना जाता है. इसलिए ज्यादातर लोग पितृ पक्ष के माह में अलग-अलग तरह के भोजन बनाकर कौवे, श्वाव और गाय के ग्रास के रूप में निकालते हैं. कुछ घरों में प्रत्येक दिन पितरों को अलग तरह की वस्तुएं ग्रास के रूप में निकाली जाती हैं. पितृपक्ष में ब्राम्हणों को भी भोजन कराना शुभ माना जाता है. शुभ माने जाते हैं कौवे के ये संकेत-माना जाता है कि अगर कौआ घर की छत या मुंडेर पर आ कर कांव कांव करता है तो घर में महमान आने का संकेत देता है. इससे घर की संपत्ति भी बढ़ती है. यदि कौवा अपनी चोंच में फूल या पत्ती दबाकर घर की छत पर बैठा हो तो इसका अर्थ यह है कि आपकी मनोकामनाएं पूरी होने वाली हैं.