हिन्दू धर्म में पूजा करते समय किन वस्तुओं का होना है आवश्यक और क्या हैं इनके महत्व

रीति रिवाज

किसी भी समाज में स्थापित किये गये कुछ वे नियम जिनसे एक व्यक्ति अपने घरेलू, सामजिक, धार्मिक आदि कार्यो और रहन सहन को पूरा कर सके उन्हें रीति रिवाज माना जाता है. रीति रिवाजो का अपना ही एक अलग महत्व होता है क्योकि ये सबको जोड़ देते है. उदाहरण के लिए जब आप किसी दूसरे देश में जाते हो तो आपको वह रहने वाले लोगो का रहन सहन, खाना पीना, भाषा, पहनावा, उनके त्याहोरो को मनाने का तरीका आदि सब कुछ अलग मिलता है तो अगर आप उस देश में रहना चाहते हो तो आपको भी उन्ही के रीति रिवाजो को अपनाना होगा. हर देश का अपना अलग रहन सहन या रीति रिवाज होते है और उन्ही से उनके समाज की पहचान भी होती है. इसी तरह हिन्दू धर्म में भी बहुत से रीति रिवाज है, उनमे से 10 रिवाजो को बहुत शुभ माना जाता है तो आज हम आपको उन्ही 10 शुभ रीति रिवाजो के बारे में ही बता रहे है जो निम्नलिखित है.

हमारे 10 शुभ रिवाज :

हर धर्म की तरह हिन्दू धर्म में भी देवी देवताओ की पूजा होती है और ताकि उन्हें खुश रख सके और उनका आशीर्वाद सदा हम पर बना रहे. इसिलिये हिन्दू धर्म में पूजा करते समय कुछ वस्तुओ का होना बहुत ही आवश्यक माना जाता है जैसे कि मंत्र, शंखनाद, चरण स्पर्श, मांग में सिंदूर, प्रसाद, कलश, आचमन, कलश, तुलसी और स्वास्तिक. कहा जाता है कि इनके बिना आपकी पूजा अधूरी रहती है. तो जानते है इनके महत्व और ये किस तरह आपकी पूजा में सहायक होते है.

शंखनाद का महत्व : अथर्ववेद के अनुसार शंख को वायु, अंतरिक्ष, सुवर्ण और ज्योतिर्मंडल से संयुक्त माना जाता है. माना जाता है कि शंख की ध्वनि से शत्रुओ का मनोबल कम होता है और अगर आप पूजा के समय शंख का नाद करते हो तो उससे आपके सभी पापो का नाश होता है और इससे आप भगवान श्री हरी के साथ जुड़ जाते हो. इसीलिए शंखनाद को सभी धार्मिक कार्यो में इतना अधिक महत्व दिया जाता है.

 प्रसाद का महत्व : श्री मद भावत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि – “ हे मनुष्य ! तू जो भी खाता है या जो भी दान करता है, या फिर तू होम यज्ञ करता है अथवा तप करता है तो उसे सबसे पहले मुझे अर्पित कर. ”  इसका अर्थ है कि उस ईश्वर ने जिसने हमे सब कुछ दिया है, हमारे खाने का, हमारे पहनने का, हमारे रहने का प्रबंद किया है, जिन्होंने हमे 5 ऐसी इन्द्रियां दी है जिससे हम किसी भी कार्यो को करने में समर्थ है, यहाँ तक की जिसने हमे सोचने और समझने के लिए बुद्धि दी है और अपनी ही छाया में हमे बना है उनको हम प्रसाद के जरिये अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे है. इसके साथ ही प्रसाद का महत्व ये भी है कि हम ईश्वर के प्रति आस्थावान है कि वो हमारे साथ है और हमारे हर दुखो को हमसे दूर रखेगा ताकि हमे अपने जीवन में हर ख़ुशी मिल सके.

मंत्रो का महत्व : कहा जाता है कि देवी देवता मंत्रो के आधीन होते है. मंत्रो के उच्चारण से उत्तपन होने वाले शब्द – शक्ति संकल्प और श्रध्दा बल दुगनी होकर आकाश में व्याप्त ईश्वरीय चेतना से मिलती है. इससे अंतरंग पिंड और बहिरंग ब्रह्मांड में एक अद्भुत शक्ति का प्रवाह होता है जिससे हमे सिद्धियाँ प्राप्त होती है.

 तीन बार आचमन का महत्व : कहते है कि अगर व्यक्ति तीन बार आचमन करता है तो उसे शारीरिक, मानसिक और वाचिक तीनो प्रकार के पापो से मुक्ति मिल जाती है और उसे अकल्पिय अनुपम फल की प्राप्ति होती है. इसी कारण से वेदों में भी लिखा है कि हमे किसी भी धार्मिक कार्य को करने से पहले तीन बार आचमन करना चाहिए.  

 कलश के महत्व : धर्मग्रंथो और धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश का भी पूजा अर्चना में विशेष स्थान है. साथ ही कलश को सुख समृधि और मंगल कामनाओ का प्रतीक चिह्न भी माना जाता है. अगर आप माँ भगवती की पूजा कर रहे हो तो देवी पुराण के अनुसार आपको सबसे पहले एक कलश की स्थापना जरुर करनी चाहिए. साथ ही आपने देखा होगा की नवरात्रों में भी मंदिरों तथा घरो में भी पहले कलश स्थापित किया जाता है, उसके बाद ही माँ दुर्गा की पुरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है. इसके अलावा एक मान्यता ये भी है कि मानव के  शरीर का कल्पना भी कलश के शरीर से ही की जाती है. क्योकि मानव शरीर रुपी कलश में भी प्राण नामक जल विद्यमान है. तो जिस तरह से प्राणहीन शरीर को अशुभ माना जाता है उसी प्रकार से जलहीन कलश को भी अशुभ माना जाता है. तो आप जब भी पूजा में कलश का इस्तेमाल करो तो उसमे दूध, पानी, अनाज आदि भरकर ही पूजा के स्थल पर रखो. और यही सब चीज़े कलश के महत्त्व को बढ़ती है.

स्वास्तिक का महत्व : माना जाता है कि स्वास्तिक की चारो भुजाएं चार युगों ( सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग ), चार वेदों, चार दिशाओ, चार वर्णों, चार आश्रमों, चार पुरुषार्थो, ब्रह्मा जी के चार मुखो, और चार नक्षत्रो का प्रत्यक्ष रूप होती है. साथ ही गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वास्तिक चिह्न भगवान गणेश का स्वरुप है. इसीलिए स्वास्तिक में सब ही विघ्न बाधाये और अमंगल को दूर करने की शक्ति होती है. आचार्य यास्क में तो स्वास्तिक को अविनाशी ब्रह्म की भी संज्ञा दी हुई है. ऋग्वेद की एक ऋचा में स्वास्तिक को सूर्य का भी प्रतीक बताया गया है. साथ ही इसे धन धन्य की देवी लक्ष्मी का भी श्री प्रतीक माना गया है. अगर हम अमरकोश की बात करे तो उसमे स्वास्तिक को आशीर्वाद, मंगल, क्षेम और पुण्य का प्रतीक माना गया है. सर्वत्र शुभता को प्रदान करने वाले इस स्वास्तिक को गणेश जी का निवास स्थान भी माना जाता है जो हर मंगल कार्य के होने और कल्याणकारी होने का प्रतीक है.

 मांग में सिंदूर का महत्व : किसी भी विवाहिता स्त्री के लिए मांग में सिंदूर का मतलब उसके पति के सम्मान का प्रतीक और उसके पति के जीवित होने के प्रतीक के रूप में होता है. साथ ही माना जाता है कि पत्नी जितनी लम्बी मांग में सिंदूर लगाती है उतनी ही लम्बी उसके पति की आयु होती है. ये उनके सुहागन होने का प्रतीक तो है ही साथ ही इसे मंगलदायक भी माना जाता है. मांग में सिंदूर लगाने से एक स्त्री के रूप सौन्दर्य में भी निखार आता है, क्योकि सिंदूर में कुछ अधिक मात्रा में धातु होता है, जिससे चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नही आती. और इसे एक वैवाहिक परम्परा और संस्कार भी माना जाता है.  

अगर शरीर रचना विज्ञान की बात करे तो सौभाग्यवती स्त्रियाँ मांग में जिस स्थान पर सिंदूर लगाती है उसे ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर माना गया है. स्त्री का यह मर्मस्थल बहुत ही कोमल होता है और उसी की रक्षा करने के लिए स्त्रियाँ सिंदूर लगाती है. साथ ही ये स्त्रियों के अंदर के विद्युतीय उत्तेजना को भी नियंत्रित करने में भी सहायक होता है.

संकल्प का महत्त्व : संकल्प का अर्थ है कि आप अपने सभी धार्मिक कार्यो को पूर्ण श्रध्दा भक्ति, विश्वास और तन्मयता से करो. जब आप इन सब कार्यो को पूर्ण संकल्प से करते हो तभी आपको दान और यज्ञ आदि सद्कर्मो का पुण्य और पूरा फल मिल पाता है. कहा जाता है कि कामना का मूल ही संकल्प है और यज्ञ संकल्प से ही पूर्ण होता है. तो आप कोई भी कार्य कीजिये लेकिन पुरे मन से करे ताकि आपको उसका उचित फल मिल सके.

 चरण स्पर्श का महत्व : चरण स्पर्श को एक छोटी सी व्यायाम के और यौगिक क्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है जिससे आपके शरीर के अंगो के संचालन की शारीरिक क्रियाये व्यक्ति के मन में उत्साह, उमंग चैतन्यता का संचार करती है. शास्त्रों में भी कहा गया है कि हमे रोज सुबह उठ कर अपने बड़ो का आशीर्वाद लेना चाहिए. विशेषतौर पर जब हम किसी काम से कहीं जा रहे हो या कोई नया काम शुरू करने जा रहे हो. चरण स्पर्श से आपकी सफलता की सम्भावना बढती है. माना जाता है कि चरण स्पर्श करने से व्यक्ति का अहंकार भी ख़त्म होता है और हृदय में समर्पण और विनम्रता का भाव जागृत होता है. आपको चरण स्पर्श करने से एक सकारात्मक उर्जा की भी प्राप्ति होती है जो आपको आपके उद्देश्य की तरफ बढ़ने में बहुत सहायक होती है.

तुलसी का महत्त्व : तुलसी को आप लगभग हर घर में देखते हो क्योकि तुलसी का घर में होना घर में सुख शांति और समृधि का प्रतीक माना गया है. साथ ही तुलसी घर से सारी नकारात्मक ऊर्जा को भी बाहर निकलती है. इसकी प्रतिदिन स्नान करने के बाद पूजा करने से आपके मन को भी शांति मिलती है और आपके मन से दूषित विचार निकल जाते है. ज्योतिष शास्त्र में भी तुलसी का विशेष स्थान है. जैसे कि अगर आप तुलसी की माला से लक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करते हो तो आपको धन की प्राप्ति होती है. साथ ही अगर आप रोज तुलसी की पूजा करोगे तो आपके सारे देवदोष दूर हो जाते है तथा अगर आप तुलसी के पौधे के साथ धतूरे के पौधे को भी रोज दूध अर्पित करते हो तो आपको पितृदोष से भी मुक्ति मिल जाती है. इनके अलावा तुलसी का उपयोग अनेक घरेलू उपायों में भी किया जाता है.

Web Title : WHAT ARE THE THINGS WHICH ARE ESSENTIAL IN HINDUISM AND WHAT ARE THERE IMPORTANCE