सांसद चुनाव में पंवार प्रतिनिधित्व के वर्चस्व को कायम रख पाएगी भारती या फिर सामान्य वर्ग के सांसदो जैसा इतिहास लिखेंगे सम्राट, निर्दलीय सांसद बनने वाले बसपा का खोलेगे खाता

बालाघाट. बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र का चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष में दिखाई दे रहा है. भाजपा और कांग्रेस के बीच बसपा प्रत्याशी चट्टान की तरह खड़े नजर आ रहे है. पूरे लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस से ज्यादा बसपा प्रत्याशी ने समाचारो में ऐसी सुर्खियां बटोरी की राष्ट्रीय खबरो तक जा पहुंचे. चूंकि इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी राजनीतिक रूप से अनुभव में बसपा प्रत्याशी से कमतर ही है, लेकिन राजनीति में अनुभव से ज्यादा, मतदाताओं तक पहुंच और पकड़, मायने रखती है, जो लगातार चुनाव हारने के कारण, बसपा प्रत्याशी की पकड़ कमजोर दिखाई दी. हालांकि इस पूरे चुनाव में भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों की तरह ही बसपा प्रत्याशी, प्रचार में समांतर चले है. यही नहीं बल्कि एक राजनीतिक प्रतिद्वंदी के रू में बसपा प्रत्याशी ने ही दोनो प्रत्याशियों पर जमकर जुबानी हमले भी किए है. जबकि कांग्रेस ने भाजपा और भाजपा ने कांग्रेस पर ही हमला बोला है. ताकि वह इस चुनाव को आमने-सामने की लड़ाई बना सके.  

सांसद चुनाव में पंवार प्रतिनिधित्व के वर्चस्व को कायम रख पाएगी भारती

बालाघाट संसदीय क्षेत्र में यह 18 और परिसिमन के बाद चौथा चुनाव है. जिसमें बालाघाट संसदीय क्षेत्र के 18 चुनाव में सबसे ज्यादा पंवार प्रतिनिधित्व ने सांसद चुनाव में अपना वर्चस्व बरकरार रखा है. जिसमें 4 बार कांग्रेस और 5 बार भाजपा से पंवार प्रतिनिधित्व सांसद पहंुचा है, जबकि एक बार भोलाराम पारधी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से सांसद बनकर दिल्ली गए है. इस तरह लगभग 10 बार पंवार प्रतिनिधित्व ने जिले के संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व दिल्ली में किया है और विगत 2004 से देखा जाए तो लगातार भाजपा से पंवार प्रतिनिधित्व, संसदीय चुनाव जीतते रहे है. इस बार भी भाजपा ने भारती पारधी के रूप में एक पंवार जाति से आने वाली महिला भारती पारधी को प्रत्याशी बनाया है और यदि वह जीतती है तो निश्चित ही भाजपा से 06 वीं और 2004 से लगातार पांचवी पंवार प्रतिनिधि के रूप में संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करेगी.  

सामान्य वर्ग के सांसदो जैसा इतिहास लिखेंगे सम्राट

यह सही है कि बालाघाट संसदीय सीट पर अब तक के हुए संसदीय चुनाव में पंवार प्रतिनिधि का प्रतिनिधित्व ज्यादा रहा है, चूंकि संसदीय क्षेत्र में इनका मतो की संख्या ज्यादा है, बावजूद इसके परिसिमन के पहले बालाघाट संसदीय सीट से सामान्य वर्ग के दो नेताओं वर्ष 1977 में कचरूलाल जैन और वर्ष 1980 एवं 1984 में नंदकिशोर शर्मा ने इस सीट पर जीत दर्ज कर जातिगत सीट के भ्रम को भी तोड़ा है. जिससे ऐसा नहीं माना जा सकता कि केवल एक जाति विशेष के प्रत्याशी ही बालाघाट संसदीय सीट पर जीत दर्ज कर सकते है, लेकिन सम्राट क्या, इस इतिहास को दोहरा पाएंगे. यदि वह इतिहास दोहराते है तो निश्चित ही उनका भी नाम संसदीय इतिहास के पन्नो में दर्ज हो जाएगा.  

निर्दलीय सांसद बनने वाले बसपा का खोलेगे खाता

बालाघाट संसदीय सीट पर चुनावो ने कई इतिहास बनाए है, जिसमंे वर्ष 1989 के संसदीय चुनाव में जो इतिहास बना था, वह जिले के संसदीय चुनाव के इतिहास में अब भी कायम है. 1989 के संसदीय चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे कंकर मुंजारे, सांसद चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे. हालांकि इस चुनाव के साल भर बाद ही हुए चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. जिसके बाद से हुए लगभग, बीच के कुछ चुनाव को छोड़कर सांसद चुनाव लड़ने वाले पूर्व सांसद कंकर मुंजारे को हार का सामना करना पड़ा है, माना जा रहा है कि संसदीय चुनाव के इतिहास में यह उनका अंतिम चुनाव है और 2024 के संसदीय चुनाव में जिस तरह से वह लोकसभा चुनाव के प्रचार में सुर्खियो में रहे है, उससे, वह इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के लिए चिंता बने है, इस चुनाव में क्या वह बसपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर बसपा को जीत दिला पाएंगे, यह तो समय बताएगा.  


Web Title : WILL BHARTI BE ABLE TO MAINTAIN THE SUPREMACY OF PANWAR REPRESENTATION IN MP ELECTIONS OR SAMRAT WILL WRITE HISTORY LIKE MPS OF GENERAL CATEGORY