लोकसभा में आदिवासी प्रतिनिधित्व देने उठ रही आवाज, बालाघाट लोकसभा भगत नेताम के नाम से फेसबुक में बना पेज तो भुवन कोर्राम को भी किया जा रहा प्रमोट

बालाघाट. 1952 से लेकर 2019 तक बालाघाट संसदीय क्षेत्र में हुए चुनाव में अब तक 17 बार हुए संसदीय चुनाव में विभिन्न जाति वर्ग के लोगों ने संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. जिसमें सबसे ज्यादा 06 बार भाजपा, 05 बार कांग्रेस, एक बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी एवं रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार सांसद बने. जिसमें सबसे ज्यादा बार पंवार, लोधी और सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे, लेकिन बालाघाट संसदीय क्षेत्र के 71 साल में किसी भी पार्टी ने आदिवासी समुदाय को टिकिट नहीं दिया. जबकि वर्तमान संसदीय क्षेत्र में बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र के दो सीटे बैहर और बरघाट आदिवासी आरक्षित सीटे है और इसके अलावा परसवाड़ा, लांजी के अलावा जिले के अन्य सीटो बालाघाट, कटंगी, वारासिवनी में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज निवासरत है. जिले में लगभग 30 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या वाले संसदीय क्षेत्र में इस बार राष्ट्रीय पार्टियों से आदिवासी नेतृत्व दिए जाने की मांग उठने लगी है. हालिया विधानसभा में आए परिणामो के बाद जिले के संसदीय क्षेत्र के दो आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट में बरघाट में भाजपा और बैहर में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. विधानसभा चुनाव में जिले की आरक्षित बैहर विधानसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस ने जीत दर्ज की हो लेकिन वह जीत ईव्हीएम से नहीं बल्कि पोस्टल बैलेट से हुई है और जीत का अंतर महज 551 वोट रहा है. जिससे यहां भाजपा की हार हुई हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता है, ईव्हीएम में भाजपा ने यहां कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी है.

इस सीट पर भाजपा से चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक भगत नेताम का मतो का आंकड़ा बड़ा है और बैहर क्षेत्र के जिन क्षेत्रो में वह अक्सर पिछड़ते रहते थे, इस बार उन क्षेत्रो में उन्होंने अच्छे वोट लिए है. विधानसभा चुनाव में भले ही उन्हें हार मिली हो लेकिन वोटो के आंकड़े से वह हारकर भी जीत महसुस कर रहे है, चूंकि इस बार उनके चुनाव परिणाम में मिले मतो से उनके मतो के आंकड़े, बीते चुनावों से अपेक्षाकृत सम्मानजनक है.  

जिससे इस बार जहां उनके समर्थक संसदीय क्षेत्र में आदिवासी मतो की बड़ी संख्या को लेकर उनका नाम लोकसभा की दावेदारी में उछाल रहे है. वहीं बालाघाट लोकसभा भगत नेताम नाम से सोशल मीडिया फेसबुक में एक पेज भी बनाया गया है, जिसमें यह मांग जोरो से उठ रही है कि इस बार भाजपा, आगामी समय में होने वाले लोकसभा चुनाव में आदिवासी नेतृत्व भगत नेताम को लोकसभा प्रत्याशी बनाकर, भाजपा के आदिवासी हितार्थ होने का परिचय दे. सोशल मीडिया फेसबुक पर बालाघाट लोकसभा भगत नेताम के नाम से बनाए गए पेज मंे उनके लोकसभा लड़ने के उठ रही आवाज के बीच जब हमने पूर्व विधायक भगत नेताम से चर्चा की तो उन्होंने भी लोकसभा चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की. उन्हांेने कहा कि आज तक बालाघाट लोकसभा में किसी आदिवासी को सांसद चुनाव लड़ने का मौका, पार्टी से नहीं मिला है ऐसे में हमारे समर्थको ने हमसे कह रहे है कि इस बार वह पार्टी से लोकसभा के लिए दावेदारी करें और पार्टी में सभी को दावेदारी करने का अधिकार है, जो निर्णय लेना है, अब निर्णय पार्टी को लेना है और यदि पार्टी कहती है कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ना है, तो वह लोकसभा चुनाव लड़ने तैयार है.  

हालिया विधानसभा के बाद भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने जिस प्रकार से तीनो हिन्दीभाषा राज्य छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में निर्णय लिया है, उससे लगता है कि पार्टी नए स्वरूप में आगे बढ़ रही है और वह जातीय आधार को संतुलन बनाकर अप्रत्याशित रूप से चेहरों को आगे कर रही है. जिससे यह नहीं कहा जा सकता कि अब पार्टी पुराने नेता या पुराने जातीय फार्मेट पर ही लोकसभा में निर्णय लेगी. चंूकि देश में तीसरी बार नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने की तैयारी में जुटी भाजपा ने अपने अप्रत्याशित निर्णयों से ढर्रे पर चलने वाली राजनीति से अलग नई राजनीति की शुरूआत की है, जिससे उम्मीद है कि इस बार लोकसभा में जिले में भाजपा कोई भी नया दांव खेल सकती है. हालांकि विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बालाघाट में लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा में एक अनार और सौ बीमार जैसी कहावत है. हर कोई मोदी लहर में टिकिट मिलने पर जीत के बहाव में ब जाना जाता है, इसलिए नेता अभी से जनता का मत और समर्थको में अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय हो गए है. बनिस्मत कांग्रेस में भी लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा जैसी ही एक अनार और सौ बीमार जैसी स्थिति है.

दूसरी ओर आदिवासी समाज से विगत कई सालों से जिले में आदिवासियो के साथ ही दलित और अल्पसंख्यकों के हक और अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे इंजी. भुवनसिंह कोर्राम का नाम भी लोकसभा में आदिवासी प्रतिनिधित्व के लिए उछाला जा रहा है, जिसको लेकर भी सोशल मीडिया में कैंपेन छेड़ दिया गया है. अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के प्रमुख इंजी. भुवनसिंह कोर्राम भी समाज में सक्रिय भूमिका निभा रहे है. जिनके समर्थकों का भी कहना है कि राष्ट्रीय राजनीतिक दल आदिवासी प्रतिनिधित्व के बारे में विचार करें, ताकि आदिवासी भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व के रूप में सामने आ सके.  

अब तक के बालाघाट संसदीय क्षेत्र में सांसद रहे नेताओं पर एक नजर 

जिले के संसदीय इतिहास में कांग्रेस से चिंतामनराव गौतम (1952 और 1957), प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी से भोलाराम रामाजी (1962), इंडियन नेशनल कांग्रेस से चिंतामन धीवरूजी (1967 और 1971), रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया से कचरूलाल जैन (1977), इंडियन नेशनल कांग्रेस से नंदकिशोर शर्मा (1980 और 1984), निर्दलीय कंकर मुंजारे (1989), इंडियन नेशनल कांग्रेस से विश्वेश्वर भगत (1991 और 1996), भाजपा से गौरीशंकर बिसेन (1998), प्रहलाद पटेल (1999), गौरीशंकर बिसेन (2004), के. डी. देशमुख (2009), बोधसिंह भगत (2014) और वर्तमान सांसद डॉ. ढालसिंह बिसेन (2019) है.  


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