अनुच्छेद 370, हंगामा है क्यों बरपा-मुस्ताअली बोहरा

बालाघाट. केन्द्र की भाजपा सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया. इसके साथ ही भाजपा के पितृ पुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी का एक देश, एक विधान, एक निशान का स्वप्न भी साकार हो गया. केन्द्र सरकार के इस निर्णय की गूंज न केवल भारत बल्कि पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक सुनाई पड रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने मुकम्मल तैयारी कर ली थी क्योंकि वो इस जोखिम को जानते थे. गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बताया कि राज्य को दो हिस्सो में विभाजित किया जाएगा. जम्मू-कश्मीर दिल्ली अथवा पुडुचेरी की तरह विधानसभा संपन्न केन्द्र शासित प्रदेश होगा. लद्दाख को अलग कर दिया गया है. उसे विधानसभा रहित केन्द्र शासित सूबे का दर्जा प्राप्त होगा. इसके लिए सरकार ने पुनर्गठन बिल सदन में पेश किया, जिसे बहुमत से पारित करा लिया गया.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वो कर दिखाया जिसकी अब तक कल्पना ही की जा रही थी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मौजूदा पीएम नरेन्द्र मोदी की तुलना करें, तो साफ हो जाएगा कि दोनों की रीति-नीति में कितना फर्क है. काले धन की बात हर सरकार करती थी पर नोटबंदी जैसा जोखिमभरा कदम सिर्फ मोदी सरकार ने उठाया. तमाम विवादों के बाद तीन तलाक की विदाई की गई. कश्मीर पर यह फैसला सरकार ने पांच अगस्त को लिया ये जानते हुए कि छह अगस्त से सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर की रोजाना सुनवाई करने जा रहा है.

मोदी ने पाकिस्तान से कश्मीर का मसला भी छीन लिया जिसे अब तक भारत और पाक का द्विपक्षीय मसला माना जाता था. पाकिस्तान ने न सिर्फ कश्मीर मसले से फायदा लिया बल्कि इस भूभाग की तथाकथित आजादी के नाम पर पाकिस्तान ने आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप खोल रखे थे और अब तक दोनों देशों के दरमियान लड़े गए चार युद्ध काफी कुछ इसी समस्या का नतीजा थे. इसीलिए पाकिस्तान की ओर से तल्ख प्रतिक्रिया आई है. इन निर्णयों को अस्वीकार करते हुए उसने संयुक्त राष्ट्र में इसे उठाने की धमकी दी है.  

जम्मू कश्मीर को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मध्यस्थता वाले बयान आए, हालांकि ट्रम्प औचक बयानी करते रहे हैं पर इमरान खान से मुलाकात के तत्काल बाद इस तरह का बयान चौंकाता हैं. हालांकि भारत ने इन तमाम सवालों से निबटने के लिए पर्याप्त कूटनीतिक तैयारी कर रखी होगी ? हो सकता है, इस मामले में कुछ नए तथ्य सामने आएं, पर मोदी और शाह को जानने वाले जानते हैं कि वे कोई फैसला लेने से पहले पूरी तैयारी करते हैं.  

जम्मू-कश्मीर को लेकर सरकार की मंशा दिखाई देने लगी थी. पूरे देश में चर्चा थी कि कुछ बड़ा होने वाला है पर क्या? जवाब नदारद था. सिर्फ हिंदुस्तान ही नहीं पाकिस्तान में भी खासी उहापोह की स्थिति थी. पहली बार अमरनाथ यात्रा बीच में रोक तीर्थयात्रियों और सैलानियों को घर वापसी के निर्देश दे दिए गए थे. रविवार, आधी रात के बाद प्रदेश के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला को नजरबंद कर दिया गया था. हुर्रियत वालों का भी यही हाल था. सरकार के फैसले के बाद उम्मीद के मुताबिक महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला सहित घाटी के तमाम नेताओं ने इस मामले पर संघर्ष की घोषणा की है. कई विपक्षी दलों ने भी यही बातें दोहराई हैं.  

सूत्र बताते हैं कि संसद सत्र शुरू होने के साथ ही पर्दे के पीछे तीन केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, पियूष गोयल और प्रहलाद जोशी के अलावा मोदी सरकार की कोशिशों को अमलीजामा पहनाने में जेएंडके के राज्यपाल सत्यपाल मलिक, संघ से भाजपा में आए पार्टी के महासचिव राम माधव, मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रमण्यम और अफसर विजय कुमार की अहम भूमिका रही. दूसरी तरफ राज्यसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन ने बीएसपी, बीजेडी सहित तमाम दलों का समर्थन हासिल कर साबित कर दिया कि इस सिलसिले में पहले से ही तैयारी की गई थी. प्लान के मुताबिक तीन तलाक और आरटीआई विधेयक को पहले लाया गया. नंबर पूरा हो गया था, कुछ दलों को गैर हाजिर, कुछ को समर्थन व कुछ को साथ लेने का काम हो गया था. तीन तलाक पर जब बड़ी सफलता मिल गई तो अनुच्छेद 370 को हटाने, जम्मू-कश्मीर के विभाजन की तैयारी की गई.  

बहरहाल, अब सरकार को जम्मू कश्मीर मसले पर कितना नफा होगा और कितना नुकसान होगा इसके कयास लगाए जा रहे हैं. सरकार को अभी घाटी और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक क्षेत्रों में इम्तिेहान देना होगा.


Web Title : ARTICLE 370, WHY IS THERE AN UPROAR, THE WREAK MUSLIM BOHRA