जानिए कब और कैसे हुई लोकास्था के महापर्व छठ की शुरुआत

लोकआस्था के पर्व छठ को महापर्व कहा जाता है. जिसका उल्लेख पुराणो में भी मिलता है. अथर्ववेद में भी छठ पुजा का वर्णन है. जो इस पर्व की महानता और प्राचिनता का प्रत्यक्ष उदाहरण है. कलयुग में भगवान भास्कर ही एकमात्र प्रत्यक्ष देवता है. छठ पुजा अकेला ऐसा पर्व है. जिसमें उद्यमान सुर्य के साथ साथ अस्ताचलगामी सुर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है.

राजा देवव्रत के पुत्र को छठी मैया ने किया था जीवित 

भागवत पुराण के अनुसार स्वंयभु मुनि के पुत्र राजा देवव्रत ने विवाह के 12 साल बाद पुत्रेष्टी यज्ञ किया जिसके बाद उन्हे पुत्र प्राप्त तो हुआ किन्तु वो जीवित नहीं था. जिसे लेकर राजा शमशान चले गए और वहां अपने मृत पुत्र को लेकर विलाप करने लगे. तभी अचानक वहां एक देवी प्रकट हुई और उन्होंने राजा से कहा की हे राजन मैं भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री हुं और मेरा विवाह भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय से हुआ है और क्योंकी मेरी उत्पत्ति प्रकृति के छठे अंश से हुई है,इसीलिए मुझे षष्ठी देवी या छठी मईया पुकारा जाता है. इसके पश्चात देवी ने अपनी ममता का परिचय देते हुए राजा के मृत पुत्र को जीवित कर दिया. कहते हैं की तभी से राजा ने इस पर्व की शुरुआत की जो आज भी पुरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है.

श्री राम और माता सीता ने भी किया था ये व्रत 

वहीं इस महापर्व का वर्णन रामायण काल में भी मिलता है. शास्त्रों में वर्णित है कि जब श्री राम,रावण का वध करने के पश्चात अयोध्या लौटे थे तब माता जानकी और प्रभु श्री राम ने पुत्र रत्ऩ की प्राप्ती के लिए सुर्य उपासना की थी.

महाभारत काल में भी मिलता है इस पर्व का उल्लेख 

इतना ही नहीं छठ पुजा के इतिहास की महाकडी में महाभारत काल का जिक्र मिलता है. कहते हैं की द्वापर युग में माता कुंति ने भगवान दिवाकर की उपासना कर महान और तेजस्वी पुत्र कर्ण को प्राप्त किया था. जो भगवान सुर्य का परम भक्त था और वो घंटो कमर तक जल में खडे रहकर भगवान सुर्य को अर्घ्य देता था. कर्ण द्वारा किए गए सुर्य उपासना की ये पद्धती आज कलयुग में भी प्रचलित है. आज भी छठ पर्व के दौरान लोग जल में घंटो खडे रहकर सुर्य के उद्य होने का इंतजार करते है. इतना ही नही ऐसी भी मान्यता है की पांचों पांडवों की आर्धांग्नी द्रौपदी ने भी राजपाट वापस आने पर इस पर्व का अनुष्ठान किया था.

मनोकामनाओ और मुरादों का पर्व छठ

इसिलिए छठ पर्व को मन्नतों और मुरादों का पर्व कहा जाता है,क्योंकी लोग ये कामना करते है की जिस तरह छठी मईया और भगवान सुर्य ने राजा देवव्रत,प्रभु श्री राम,कुंती और द्रौपदी की अलग अलग इच्छाएं पुरी की थी ठिक उसी प्रकार वो इनकी भी मनोकामनाओं को पुर्ण करें.

कोशी भरने का भी है विधान 

छठ पर्व के दौरान बिहार,झारखण्ड  और उत्तर प्रदेश में एक अलग दृश्य देखने को मिलता है. ऐसी मान्यता है की लोग छठी मईया के श्री चरणों में अपनी अपनी मनोकानाएं रखते है. और जब वो मनोकामनाएं पुरी हो जाती है. तब कोशी भरने का विधान है. जिसके लिए गन्ने के 12,9 अथवा 7 पेड का एक समुह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का दिया रखकर उसकी पुजा की जाती है और बाद में इसी प्रक्रिया से छठ घाट पर भी पुजा की जाती है.

छठ पूजा का है वैज्ञानिक महत्व

छठ पुजा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी खासा महत्व है. जी हां छठ पुजा के दौरान भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है,जिससे भगवान भास्कर की सिधी किरणे शरीर पर पडती है. जिस कारण शरीर के त्वचा संबंधी रोग ठिक हो जाते है. लोकआस्था के इस महापर्व के दौरान हर कोई आस्था के समुंदर में डुबकी लगाने को बेताब रहते है और भक्ति भाव से भगवान दिवाकर की उपासना करते हैं. लोक आस्था के महापर्व की महिमा युं ही युगों युगों तक चलती रहे यहीं प्रार्थना है.

शिल्पा सिंह 


Web Title : WHEN AND HOW THE MAHAPARV CHHATH IS STARTED