बालाघाट. देश में लोकसभा चुनाव को अब समय नहीं है, राजनीतिक दलो ने लोकसभा चुनाव को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर दी है. जिले में कांग्रेस की अपेक्षा, भाजपा मजबूत नजर आ रही है, वहीं बीते कई लोकसभा चुनाव से बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र की कमान भाजपा के हाथो में है, कांग्रेस ने संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी तो बदले लेकिन परिणाम नहीं बदले. आलम यह रहा कि कांग्रेस को बालाघाट में हजारों और लाखों वोटो से हार का सामना करना पड़ा. वर्तमान समय मंे जिस तरह से कांग्रेस के हालत है, ऐसे में इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए जीत असंभव तो नहीं लेकिन संभव भी नजर नहीं आ रही है. कांग्रेस के अंदर से आ रही जानकारी पर गौर करें तो कांग्रेस किसी नए प्रत्याशी पर दांव लगाने की अपेक्षा अपने पिटे हुए प्यादो को चुनाव मैदान में उतर सकती है. जिसका भी खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है.
इससे पहले कांग्रेस के सामने अपने परंपरागत आदिवासी वोटो को बनाए रखने की बड़ी चुनौती है, चूंकि अब तक खामोश रहे आदिवासी समाज ने कांग्रेस से संसदीय क्षेत्र में इस बार आदिवासी प्रतिनिधित्व देने की आवाज को बुलंद किया है. आदिवासी समाज ने कांग्रेस की संसदीय क्षेत्र में हो रही लगातार हार को देखते हुए इस बार जातिगत वोट बैंक में मजबूत आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले को प्रत्याशी बनाए जाने की मांग की है. यह मांग प्रेसवार्ता के माध्यम से आदिवासी समाज ने कांग्रेस से की है. वीरांगना रानी दुर्गावती भवन में आयोजित प्रेसवार्ता में आदिवासी विकास परिषद जिलाध्यक्ष दिनेश धुर्वे ने कहा कि देश की आजादी के 76 साल बाद भी संसदीय क्षेत्र में आदिवासी को लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने का अवसर कांग्रेस ने कभी नहीं दिया है.
पूर्व विधायक अर्जुनसिंह काकोड़िया ने कहा कि वर्तमान समय में कांग्रेस विषम परिस्थिति के दौर से गुजर रही है, आगामी समय में लोकसभा चुनाव होने है. देश की आजादी के बाद से आदिवासी समाज, कांग्रेस से जुड़ा है और हर चुनाव में लगभग 70 से 75 प्रतिशत आदिवासी मतदाता, कांग्रेस को मतदान करता हैं. विगत लंबे समय से बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस दूर है और यह सीट भाजपा के पास है. जिससे हमने तय किया गया कि सामाजिक बैठक कर हम संसदीय क्षेत्र की परिस्थिति से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को अवगत कराये कि काफी समय से इस संसदीय क्षेत्र में हार रही कांग्रेस, यदि आदिवासी प्रतिनिधित्व देती है तो निश्चित ही इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है और समाज भी अपने प्रतिनिधित्व को लेकर एकजुट होगा. चूंकि 2011 की जनगणना में संसदीय क्षेत्र में आदिवासी लगभग साढ़े 6 लाख थे, आज उनकी संख्या 8 लाख के करीब पहुंच गई है. यदि जातिगत आधार पर आदिवासी जिले बालाघाट में कांग्रेस आदिवासी कार्ड खेलती है तो इसका फायदा कांग्रेस को हो सकता है. चूंकि अधिकांश आदिवासी प्रतिनिधित्व पंचायत से लेकर जिला पंचायत तक और विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे है.
श्री काकोड़िया ने कहा कि चूंकि कांग्रेस हमारी पार्टी है और हमने इसे मजबूत करने का प्रयास किया है तो आज हम अपने हक और अधिकार की मांग कर रहे है और हम प्रतिनिधित्व की मांग कांग्रेस पार्टी फोरम भी रखंेगे. उन्होंने कहा कि बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र में ऐसे कई आदिवासी चेहरे है, जो प्रतिनिधित्व कर सकते है. चूंकि जातिगत आधार पर टिकिट का वितरण होता है तो आदिवासी समाज जिले में बहुसंख्यक है, इसलिए इसे प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. आदिवासी कांग्रेस जिलाध्यक्ष संदेश सैयाम ने कहा कि अब तक कांग्रेस ने जातिगत आधार पर पंवार, मरार और लोधी समाज को प्रतिनिधित्व करने का अवसर दिया है, एक बार वह आदिवासी समाज को प्रतिनिधित्व करने का अवसर दे. चूंकि जिला आदिवासी बाहुल्य जिला है और यदि कांग्रेस आदिवासी प्रतिनिधित्व देती है तो बालाघाट संसदीय क्षेत्र में बहुसंख्यक आदिवासी समाज एकजुट होकर कांग्रेस को यह सीट जीत के रूप में भेंट कर सकता है. इस दौरान पूर्व जनपद अध्यक्ष सुशीला सरोते, दलसिंह पंद्रे, स्मिता टेकाम, महिला प्रकोष्ठ आदिवासी विकास परिषद अध्यक्ष कुर्वेती, पूर्व जिला पंचायत सदस्य संध्या काकोड़िया, जनपद सदस्य ब्रजलाल तेकाम आदिवासी गोवारी पूर्व जिलाध्यक्ष बाबा नाथेश्वर सहित अन्य उपस्थित थे.