भारती की जीत से नए युग की होगी शुरूआत?

बालाघाट. जिले के विकास से लेकर भाजपा की राजनीति तक, भारती पारधी की जीत पर युग के बदलने का संभावनाए राजनीति जानकार लगाने लगे है. चूंकि भारती पारधी, तीसरी बार चुनावी राजनीति में है. इससे पहले जिला पंचायत चुनाव और उसके लंबे अरसे बाद उन्होंने पार्षद का चुनाव लड़ा. जिसके बाद अब वह सीधे सांसद का चुनाव लड़ रही है. यहां तक पहंुचने मंे उनकी कर्मठता और निष्ठा के साथ ही एक बड़ा रोल, प्रदेश में मंत्री प्रहलाद पटेल का भी माना जा रहा है. कहा जाता है कि उनके प्रयासो से ही भारती पारधी को पार्टी ने सांसद का टिकिट दिया है. यही नहीं बल्कि संसदीय सीट पर लेकर प्रहलाद पटेल ने संगठनात्मक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से जमीन भी तैयार कर दी है, जिस जमीन से भारती की जीत से एक नए युग की शुरूआत मानी जा रही है.

एक जानकारी के अनुसार वर्ष 1999 मंे बाहरी प्रत्याशी के रूप में प्रहलाद पटेल ने बालाघाट संसदीय सीट में चुनाव लड़ा था. जिन्हें रनिंग सांसद गौरीशंकर बिसेन की टिकिट काटकर सांसद प्रत्याशी बनाया गया था. राजनीतिक जानकार बताते है कि रनिंग सांसद होने के बाद भी टिकिट नहीं मिलने से गौरीशंकर बिसेन खासे नाराज थे, लेकिन अन्य जगहों की तरह प्रहलाद पटेल ने बालाघाट संसदीय सीट पर जीत दर्ज कर प्रदेश और केन्द्रीय नेतृत्व को यह साबित कर दिया था कि उन्हें संगठन, जहां की भी जिम्मेदारी दे, वह उसे पूरा करने तैयार है, जिसके बाद बालाघाट में उनके समर्थकों की संख्या बढ़ी, उन समर्थको में वर्तमान भाजपा प्रत्याशी भारती पारधी के अलावा और भी कई समर्थक बने. इसी दौरान श्रीमती भारती पारधी जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुई, जिला पंचायत में भाजपा समर्पित प्रत्याशियों के बहुमत के बावजूद अध्यक्षीय चुनाव में उन्हें एक वोट से हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इस हार की वजह क्या थी? इसकी तो कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि भारती पारधी की उंचाईयां, पार्टी के लोगो को ही रास नहीं आ रही थी.  

हालांकि एक कार्यकाल के बाद प्रहलाद पटेल को पार्टी ने बालाघाट संसदीय क्षेत्र से टिकिट नहीं दिया. इस संसदीय कार्यकाल के बाद 2004 में लोकसभा चुनाव में भाजपा ने गौरीशंकर बिसेन को विधायक रहते हुए सांसद की टिकिट दी. जिस चुनाव में जीत दर्ज कर गौरीशंकर बिसेन, ना केवल दूसरी बार सांसद बने बल्कि भाजपा की जीत की हेट्रिक भी बनाई.  

जिसके बाद में भाजपा ने हर चुनाव में प्रत्याशी को बदलने की परंपरा सी बना ली और वर्ष 2009 में के. डी. देशमुख को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया और उन्होंने सांसद चुनाव में जीत दर्ज की. फिर देश मंे मोदी युग की शुरूआत में 2014 के लोकसभा चुनाव में गौरीशंकर बिसेन के बेटी मौसम को सांसद टिकिट दिलाने के लिए अथक प्रयास के बाद भी पार्टी ने बोधसिंह भगत को प्रत्याशी बनाया. मोदी युग की शुरूआत और मोदी का आकर्षण, ऐसा की, मोदी के नाम पर बोधसिंह भगत की नैया पार लगी और वह पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी की सरकार में सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे. फिर इस बीच ऐसे कुछ घटनाक्रम सामने आए, जिसमें सांसद बोधसिंह भगत और प्रदेश सरकार में मंत्री रहे गौरीशंकर बिसेन, एकदूसरे के जानी-दुश्मन बन गए और दोनो एकदूसरे के घोर विरोधी हो गए. तब तक मंत्री गौरीशंकर बिसेन का कद सरकार और महाकौशल की राजनीति में बड़ा हो गया था. प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के एक ही शंकर के रूप में जिले की भाजपा राजनीति में वह चाणक्य बन गए. वर्ष 2019 के चुनाव में भी भाजपा नेता गौरीशंकर बिसेन ने बेटी के लिए पार्टी से टिकिट मांगा और संसदीय सीट से जीताने का वादा तक किया, लेकिन पार्टी बोधसिंह भगत को उम्मीदवार बनाना चाहती थी. जिसका गौरीश्ंाकर बिसेन ने ना केवल व्यक्तिगत तौर से बल्कि संगठन में बैठे कृपापात्रों से इसका विरोध दर्ज कराया. जिसका परिणाम यह रहा है कि गौरीशंकर बिसेन से बोधसिंह भगत के स्थान में बेटी को छोड़कर अन्य नाम सुझाने का प्रस्ताव केन्द्रीय और प्रदेश नेतृत्व ने मांगा, चूंकि तब तक जिले के भाजपा राजनीति में गौरीभाऊ की राजनीतिक ताकत का अंदाजा हर किसी को था, जो गौरीशंकर बिसेन से इत्तेफाक नहीं रखते थे, वह भी ज्यादा प्रभावशाली नहीं थे. यही कारण रहा है कि अपने घोर विरोधी बोधसिंह भगत को अलग करने के लिए गौरीभाऊ ने पूर्व मंत्री और लगभग पार्टी की लाईन से साईड हो चुके डॉ. ढालसिंह बिसेन का नाम आगे बढ़ाकर उन्हें जीताकर भेजने का मजबूत वादा किया. जिसकी जीत को लेकर गौरीशंकर बिसेन ने खूब मेहनत भी की और जमकर पैसा भी लगाया. उन्हें उम्मीद थी कि सांसद बनने के बाद डॉ. ढालसिंह बिसेन, उनके कहे अनुसार चलेंगे, लेकिन यहां भाऊ को अपने राजनीतिक अनुभव में मात मिली. डॉ. ढालसिंह बिसेन सांसद तो बन गए, लेकिन सांसद बनते ही उन्होंने अपना अलग रास्ता बनाना शुरू कर दिया.  

1999 से 2019 के इस बीच, प्रहलाद पटेल, जिले की राजनीति मंे कई फ्रंट फुट पर नजर नहीं आए, हालांकि ऐसा नहीं था कि उन्होंने जिले में आना छोड़ दिया था. यहां उनके समर्थकों द्वारा बुलाए जाने पर वह अक्सर यहां आते और अपने लोगो से मिलते रहे, लेकिन जिले की पार्टी राजनीति और संगठन में उनका ज्यादा हस्तक्षेप कभी नहीं रहा. इस दौरान जब भी गौरीशंकर बिसेन से प्रहलाद पटेल को लेकर पूछा जाता तो उनका जवाब अलग ही होता था.  

विधानसभा में प्रहलाद की जीत और गौरीशंकर बिसेन की हार ने बदले जिले के समीकरण

2023 में हुए विधानसभा के चुनाव में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने कई परिवर्तन किए. सर्वे के आधार पर टिकिट वितरण के साथ ही अपने कई सांसदो को विधानसभा में उतारा. जिसमें प्रहलाद पटेल को विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया. समय ने ऐसी करवट बदली की सांसद के बाद प्रहलाद पटेल विधायक बन गए लेकिन दो बार के सांसद और 7 बार के विधायक होने के बाद गौरीशंकर बिसेन को अपने चिर-परिचित प्रतिद्वंदी से सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा. इधर प्रहलाद पटेल के विधायक बनने के बाद उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं भी जोर पकड़ने लगी, लेकिन जैसा कि भाजपा में कहते है कि मोदी है तो मुमकिन है, जिन्हें प्रदेश का मुख्यमंत्री बनना बताया जा रहा था, उनसे अलग डॉ. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर मोदी ने,  नामुकिन लग रहे काम को मुमकिन कर दिया. मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर होने के बावजूद प्रहलाद पटेल के कार्यो से प्रभावित होकर नेतृत्व के निर्देश पर उन्हें केबिनेट मंत्री बना दिया. यहां से प्रहलाद पटेल, पहले से ज्यादा महाकौशल के बड़े नेता के रूप में उभरकर सामने आए. जिसके बाद उन्हें संसदीय चुनाव में लोकसभा क्षेत्र का क्लस्टर प्रभारी बनाकर, केन्द्रीय नेतृत्व ने उन पर पूरा विश्वास जताया. यहां से ही 2024 में होने वाले संसदीय चुनाव में प्रत्याशी की रेस शुरू हुई. जिसमें बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र से कई दिग्गजों को पछाड़कर भारती पारधी ने सांसद का टिकिट हासिल कर लिया. वह भी उस समय, जब उसे नगरपालिका अध्यक्ष बनाने को जिले का संगठन और नेता तैयार नहीं थे. कहा जाता है कि अपने पूर्व समर्थक, भारती पारधी को टिकिट दिलाने मंे मंत्री प्रहलाद पटेल ने अपनी अहम भूमिका निभाई और संगठन को विश्वास दिलाया की भारती पारधी के रूप में जिले के यह सीट भाजपा को जीताकर देगे.  

जिसके बाद जैसे मंत्री प्रहलाद पटेल ने बालाघाट संसदीय क्षेत्र का मोर्चा ही संभाल लिया. पार्टी प्रत्याशी के नामांकन रैली से लेकर प्रत्याशी के समर्थन में सामाजिक बैठकों से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बालाघाट आगमन तक अपनी अहम भूमिका निभाई. भले ही वह उसके बाद जिले में नजर नहीं आए लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यदि भारती पारधी की जीत होती है तो निश्चित ही नए युग की शुरूआत होगी और जो जिले में एक युग का समापन होगा. यही कारण है कि कभी उनके विपक्ष में रहे वरिष्ठ नेता भी निर्देश पर फ्रंट फुट में आकर काम कर रहे है.  


Web Title : WILL BHARTIS VICTORY USHER IN A NEW ERA?