तिरंगे के साये में महफूज तरीके से किया बॉर्डर पार, यूक्रेन से घर पहुंची मुस्कान, वापस लौटे मेडिकल छात्रो के लिए सरकार करें विचार-मुस्कान

बालाघाट. रूस और यूक्रेन के बीच शुरू हुए युद्ध में फाईटर प्लेन और धमाकों की आवाज से जिंदगी का डर और घर की याद सता रही थी. एक समय ऐसा भी आया कि कमरे में रखा सब खाने का सामान खत्म होने लगा था लेकिन यह हमारा भाग्य अच्छा रहा कि मेरे साथ रहने वाली दो अन्य विशाखापट्टनम और राजस्थान की छात्रा किरगोग्राथ से तिरंगे लगे झंडे की बस में 26 घंटे में हंगरी पहंुचे. 26 घंटे की इस यात्रा के दौरान डर और दहशत के साये में पूरा सफर गुजरा, हालांकि एक स्थान पर बस का टायर खराब हो जाने से उन्हें पांच घंटे इंतजार करना पड़ा. जहां से इंडियन एम्बेंसी के निर्देशानुसार सिटी जोहानी में पूरी कार्यवाही के बाद वुडाबेस पहुंचे और यहां से अगले ही दिन ऑपरेशन गंगा के तहत भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही फ्लाईड से दिल्ली पहुंची. इस दौरान केवल यूक्रेन के मीडिल स्थान से हंगरी पहुंचने तक उन्हें बस का किराया देना पड़ा. जबकि इसके बाद नागपुर पहुंचने तक उनकी पूरी वापसी में उन्हें कोई खर्च नहीं उठाना पड़ा, यह कहना है, यूक्रेन से लौटी एमबीबीएस की छात्रा मुस्कान गौतम का.

परिजनो के बीच पहुंचे मुस्कान के चेहरे पर भले ही आज खुशी नजर आ रही हो लेकिन वह तहे जिंदगी 25 की यूक्रेन टाईम अनुसार सुबह से प्रारंभ हुए यूक्रेन और रूस के बीच चले रहे युद्ध में फाईटर फ्लेन और धमाकों के बीच बिताये गये उन तीन दिनों की याद को नहीं भुल सकती. भारत सरकार के ऑपरेशन गंगा के तहत सुरक्षित यूक्रेन से लौटी बेटी को अपने बीच पाकर मां और छोटी बहन भी खुश है, काफी दिनों बाद उनके चेहरे पर वह वास्तविक खुशी देखी गई, जो बेटी के इंतजार में कहीं गुम हो गई थी.

तीन दिनों को कभी नहीं भुल सकती

यूक्रेन के डोनेस्टक नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस फिफ्थ ईयर की छात्रा मुस्कान गौतम ने बताया कि वह 25 फरवरी को इंडिया लौटने वाली थी. जिसके लिए वह कोरोना टेस्ट कराने गई थी, लेकिन इसी बीच 25 फरवरी को यूक्रेन और रूस के बीच प्रारंभ हुए युद्ध में यूक्रेन के समयानुसार कीव में सुबह अटैक हो गया. जिसके बाद कुछ समझ नहीं आया. लगातार सायरन, धमाके और फाईटर प्लेन की आवाज के बीच युद्ध के हालत से घबराहट होने लगी. जिसके बाद उन्हें बंकर में रखा गया. जहां से वह 28 को अपने कुछ साथियो के साथ बस से हंगरी बॉर्डर के लिए रवाना हुए, इस दौरान उनके बस के सामने तिरंगा लगा होने से उन्हें रास्ते में किसी ने नहीं रोका. किस्मत की बात यह रही कि हमारे बस चालक के पास यूरोपियन यूनियन का कार्ड होने से हम सीधे हंगरी बॉर्डर तक पहुंच गये. इन तीन दिनों की याद वह पूरी जिंदगी नहीं भुल सकती है.

भले ही युद्ध में फंसी रही लेकिन मां का हौंसला बढ़ाते रही

यूक्रेन से सकुशल घर लौटी एमबीबीएस छात्रा मुस्कान की मां श्रीमती ममता गौतम ने बताया कि युद्ध के हालत के बीच  बेटी मुस्कान खौफजदा रही लेकिन हमेशा ही बातों पर वह हमारा हौंसला बढ़ाते रही और यह कहती रही कि उसकी चिंता न करें, वह सुरक्षित है. जबकि वहां से आने के बाद उसने पूरे घटनाक्रम की जानकारी जब दी, तब पता चला कि युद्ध के हालातों में बेटी ने किस तरह से फंसे होने के बाद भी परिजन चितिंत और घबराये न, इसके लिए हमारा हौंसला बढ़ाया.  

सही जानकारी मिलने से जल्दी पहुंची मुस्कान

यूक्रेन में फंसी बालाघाट की दो बेटियो मुस्कान गौतम और प्रगति ठाकरे के यूक्रेन से वापस लौटने की जानकारी मुस्कान के लिए सटिक रही. मुस्कान को जानकारी मिली थी कि हंगरी बॉर्डर में कम विद्यार्थी है, जहां से वह जल्द ही भारत लौट सकती है, जबकि प्रगति को जानकारी मिली थी कि रोमानिया में कम विद्यार्थी है, इस जानकारी के कारण प्रगति, जो मुस्कान के पहले रोमानिया के निकली थी, वह मुस्कान से लेट घर पहुंची. जबकि मुस्कान पहले आ गई.

वापस लौटे छात्रोें के सरकार करें विचार-मुस्कान 

यूक्रेन से सुरक्षित घर लौटी मुस्कान का कहना है कि हजारों मेडिकल छात्र, युद्ध के बीच अपने जीवन को सकुशल बचाकर लौटे है, जिसमें लगभग सभी छात्रों की पढ़ाई अधूरी है, हालांकि अभी वह यूक्रेन और रूस के बीच खत्म होने वाले युद्ध के बाद पैदा होने वाले हालातो का इंतजार कर रहे है लेकिन सरकार यदि देश में मेडिकल की फीस को कम करें या फिर मेडिकल पढ़ाई में ज्यादा अवसर बढ़ाये तो देश के बच्चों को मेडिकल की पढ़ाई करने बाहर नहीं जाना पडे़गा. वहीं अपनी मेडिकल की पढ़ाई को बीच में छोड़कर पहंुचे हजारों मेडिकल छात्रो के भविष्य के लिए सरकार विचार करें और देश में ही उन्हें ऐसा माहौल उपलब्ध करायें कि वह यहां अपनी शेष पढ़ाई कर सकें तो देश के मेडिकल युवाओं का भविष्य संवार जायेगा. जिसके लिए सरकार को विचार करना चाहिये.


Web Title : IN THE SHADOW OF THE TRICOLOR, THE BORDER CROSSED IN A SAFE WAY, SMILED AT HOME FROM UKRAINE, THE GOVERNMENT SHOULD THINK FOR THE RETURNED MEDICAL STUDENTS.