जिन शासन मोक्ष मार्ग के लिए सुंदर मार्ग-जैनमुनि श्री विराग मुनि म.सा.

बालाघाट. श्री जिनकुशल दादाबाड़ी इतवारी गंज में विराजमान खरतर विभूषण पूज्य गुरूदेव श्री जयानंद मुनि जी महाराज के शिष्यरत्न आगम ज्ञाता खरतरगच्छ गणाधीश पन्यास प्रवर पूज्य गुरूदेव श्री विनय कुशल मुनि जी म. सा. के शिष्य दिव्य तपस्वी महासाधक पूज्य गुरूदेव श्री विराग मुनि जी म. सा. बालाघाट में आयोजित चातुर्मास में प्रतिदिन प्रातः 6 बजे से 7 बजे तक स्वाध्याय एवं सुबह 9 बजे से 10 बजे तक पार्श्वनाथ भवन में प्रवचन दिया जा रहा है.  इसी कड़ी में 3 अगस्त को श्री विरागमुनि जी म. सा. ने बताया कि ‘सामायिक एक अमृत अनुष्ठान है. इसकी महत्ता को हमें समझना है. स्वाध्याय में ‘‘करेमि भंते‘‘ की हम सामान्य विवेचना करते हैं मगर इसमे बहुत गहराई हैे जिसे समझने जिज्ञासा होनी चाहिए. ‘‘दुविहं तिविहेणं‘‘ श्रावक के लिए, मैं मन, वचन काया से कोई पाप नही करूॅगा और न ही करवाऊंगा.

गुरूदेव ने बताया कि हमारे अंदर ममत्व भाव सुक्ष्म रूप से रहा हुआ है. संसार में सारे पाप के साधन हैं जिसमें हिंसा के भाव है. पाप बल सतत् चालु हैं. ‘‘पडिक्कमामि निंदामि गरिहामी‘‘ अर्थात् सामायिक हमें सांसारिक बाते या कार्य नही करने चाहिए. हमें पाप कर्मो से बचने हेतु सतत् सावधानी रखनी चाहिए. द्रव्य सामायिक एवं भाव सामायिक में किसी को सांसारिक सलाह देते है तो हमें उस पाप का भागीदार बनना पड़ता है. इसलिए कहा गया है कि सामायिक पोषद्शाला में ही करनी चाहिए. यदि हम भाव पूर्वक सामायिक करते हैं तो हमारे अंदर आत्म विश्वास जागेगा आनन्द की अनुभूति होगी कि प्रभु आज मैं आपके काफी निकट आ गया हॅु. यदि हम किसी व्यक्ति व्यक्ति को जिन वचनों प्रवचन, सामायिक, प्रतिक्रमण पूजा आदि से जोड़ते हैं तो हमे भी जीवों के अभय दान का पुण्य लाभ प्राप्त होगा. जिन शासन अद्भूत है. ‘‘जाव नियमं‘‘ आगम अनुसार सामायिक का समय 48 मिनिट है किन्तु यदि हमारे पास समय कम है तो उतने समय तक ही हम समताभाव रखे. ‘‘जाव पजवासमी‘‘ जब तक मैं    वैयावच, स्वाध्याय में रहुॅ प्रभु तब तक मैं समताभाव में रहॅु. हमें सूत्रों का अर्थ एवं भावार्थ मालुम होना चाहिए. सूत्रों का आगम को राजपूत्र कहा गया है, क्योंकि आगम तीर्थंकर भगवान के मुख से निकले हैं और गणधरों ने उन शब्दों को सूत्रों में पिरोया है. सूत्रों के अर्थ की हमें अनुभुति होना चाहिए. गणधर रचित सुत्र मैं बोल पा रहा हॅू इसका अहोभाव होना चाहिए. आज तीर्थकर नहीं पर ये सुुत्र आगम आदि  तीर्थंकर तुल्य ही है.  

गुरूदेव ने बताया कि ‘‘भक्तांबर सूत्र‘‘ को भाव सहित राग से गाया जावे तो समय लगता है किन्तु इसमें भगवान की स्तुति के अतिशय प्रभाव बताए गए है. इन सूत्रों का गहराई से चिंतन किया जाना चाहिए.  स्वाध्याय पर बोलते हुए गुरूदेव ने कहा कि ‘‘पडिक्कमामि निंदामि‘‘ प्रतिक्रमण में पापों का प्रायश्चित, पापों की निंदा करना एवं अपने द्वारा जो भी पाप किये हैं उसका पश्चाताप होना चाहिए, पापों से घृणा होनी चाहिए. ‘‘गरियामी‘‘ सद्गुरू के समक्ष पापों की आलोचना करना उन्हें किये पापों से अवगत कराना है हमें कहना है कि ‘अपाणं ओसरामि‘‘ पापों से उन प्रयामी से निवृत्ति पाप मिथ्या है, प्रभु जितनी देर में सामायिक में रहॅु, प्रभु पाप कार्य से दूर रहॅूगा, पाप कार्य नही करूॅगा.

स्वाध्याय उपरांत मुनि श्री विरागमुनि जी म. सा. ने प्रवचन देते हुए कहा कि जिन शासन मोक्ष मार्ग के लिए सुंदर मार्ग है. हम अज्ञानता के कारण दुःखों के मार्ग की ओर अग्रसर होते हैं एवं वास्तविक सुख से दूर हो जाते हैं. इसलिए हम 12 प्रकार की भावनाओं का अध्ययन कर रहे हैं. ज्ञानी भगवंत कहते हैं कि यदि ये 12 भावनाएॅ समझ आवे एवं अमल करें तो उस भव में तो सुख शांति प्राप्त होगी किन्तु भावांतर मे भी सुख की गारंटी है. जीवन अनादिकाल से भटक रहा है, सब क्षणिक है. सब कुछ जाने वाला है. पदार्थ पुण्य से प्राप्त होते हैं किन्तु उनका वियोग भी निश्चित है. परिवार मेले जैसा है मिलना संयोग एवं छोड़कर जाना वियोग है. जीव जानता है सब अनित्य है किन्तु जब तक हैं तब तक पाप कार्य में लगा रहेगा, यही मिथ्या भावना हैं. अपने प्रभु श्रीराम जी, लक्ष्मण जी एंव सीता जी का उदाहरण विस्तार से समझाया. गुरूदेव ने कहा कि मोहिनी कर्म के वश में आ जाते हैं, अपना पुरूषार्थ  कितना अपना झांकना, कितना संसार में भरोसा, मात्र धर्म का है. जो मोक्ष मार्ग में शरण देवे वही धर्म है.


Web Title : THE BEAUTIFUL PATH TO THE PATH OF SALVATION BY THE GOVERNMENT JAINMUNI SHRI VIRAG MUNI M.S.