राष्ट्र के चौकीदार से गांव के चौकीदारों की मांग, कम से कम मजदूरी के ही रूप में कुशल श्रमिक का वेतन दे, कोटवार संघ ने प्रधानमंत्री के नाम सौंपा ज्ञापन

बालाघाट. यह कैसी विडंबना है कि जिस भारतीय संविधान में शासन के सभी कर्मचारियों के लिए नियम बने है, जो कर्मचारियों पर लागु भी हो रहे है लेकिन यह दुर्भाग्य है कि भारतीय संविधान में कोटवार (चौकीदार) के लिए बनाये गये नियम आज तक लागु नहीं किये गये. जिसके फलस्वरूप कोटवार की पीढ़ी दर पीढ़ी की हालत दयनीय और बदहाल होती जा रही है. आज तक इनकी ओर न तो श्रम विभाग, राजस्व विभाग, मानव अधिकार आयोग, अनुसूचित एवं अनुसूचित जनजाति आयोग ने कोई ध्यान नहीं दिया. जिसके कारण आज भी इस महंगाई के दौर में महज 4 हजार रूपये पारिश्रमिक वेतन में कोटवार कार्य करने मजबूर है, कहीं तो ऐसे भी है, जिन्होंने इसी सेवा में पूरा जीवन गुजार दिया और कुछ ऐसे भी है, जो बिना वेतन है, जिन्हें शासन ने जो जमीन सेवाभूमि के रूप में दी है, वह भी उबड़-खाबड़ है, जिन्हें सरकार महज 400, 600 और एक हजार रूपये पारिश्रमिक मानदेय देती है, जो स्वयं को बंधुआ मजदूर समझकर काम करने विवश है. यह हम नहीं बल्कि कभी गांव के चौकीदार, जो आज पदनाम चेंज होने से कोटवार कहे जाने वाले कोटवारों की व्यथा है.  

कोटवारों को लेकर प्रदेश शासन की अनदेखी और कम पारिश्रमिक दिये जाने से व्यथित कोटवारों ने प्रधानमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन प्रशासन को सौंपा और मांग की कि देश के वास्तविक चौकीदार प्रधानमंत्री हमारी मांगो पर ध्यान दे, ताकि कम से कम कोटवारों को पारिश्रमिक मजदूरी के रूप में कुशल श्रेणी का कलेक्टर रेट पर वेतन और सेवा भूमि का अधिकार दिलाये.  

मध्यप्रदेश कोटवार संघ जिलाध्यक्ष अशोक गेडाम ने बताया कि 11 अक्टूबर को मध्यप्रदेश कोटवार संघ के प्रांतीय आव्हान पर प्रदेश के सभी जिला मुख्यालयों में प्रधानमंत्री के नाम कोटवार संघ, कोटवारों के साथ मिलकर ज्ञापन सौंप रहा है, ताकि राष्ट्र के चौकीदार, गांव के हम चौकीदारो की मांग को सुन सके. उन्होंने बताया कि वर्षो से शासन, प्रशासन के सूचना तंत्र के रूप में गांव में कोटवार पुलिस एवं राजस्व विभाग के एकमात्र स्थानीय कर्मचारी के रूप में तीन पीढ़ियों से पीढ़ी दर पीढ़ी कार्य करते आ रहे है. आजादी के पूर्व से कार्य करने वाले कोटवार पद में आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आया. आज तक शासन ने कोटवारों को नियमित करना तो दूर जीवन जीने लायक तक वेतन नहीं दिया है. जहां देश-प्रदेश का चहुंमुखी विकास हो रहा है लेकिन निरंतर 24 घंटे सभी विभागों की ड्यूटी करने वाले कोटवार आज भी अपने परिवार के भरण-पोषण, बच्चों की शिक्षा तथा इस भीषण महंगाई मंे दो जून की रोटी खाने मोहताज है, जो सीधे तौर से कोटवारों के साथ अमानवीय अन्याय है.  

उन्होंने बताया कि विगत 40 वर्षो से कोटवार अपनी मांगो को लेकर सरकार को अवगत कराते आ रहे है, जिसके बाद इस समय कुछ जिलो में कोटवार भुख हड़ताल भी कर रहे है, लेकिन प्रदेश सरकार न तो कोटवारों को नियमित कर रही है और न ही उन्हें कलेक्टर रेट पर वेतन दे रही है. जबकि मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 230 में कोटवारों को अस्थाई से स्थाई करने के नियम भी है.  

उन्होंने कहा कि हमारी हाथ जोड़कर विनति है कि कोटवारों के हित में कोई निर्णय ले और कोटवार अच्छा और सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सके, इस दिशा में प्रयास करते हुए प्रदेश सरकार को कोटवारों को नियमित करने और सेवा भूमि का मालिकाना हक प्रदान करने के निर्देश जारी करे. जिला मुख्यालय में प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपने पहुंचे मध्यप्रदेश कोटवार संघ की अगुवाही में पूरे जिले के कोटवार साथी मौजूद थे.  


Web Title : DEMAND FOR VILLAGE CHOWKIDARS FROM THE WATCHMAN OF THE NATION, PAY SALARIES OF SKILLED LABOURERS AS MINIMUM WAGES, KOTWAR SANGH SUBMITS MEMORANDUM TO PM