मजदूरों की मजबूरी: कोई पैदल तो कोई किराये के वाहन से पहुंच रहा घर, मजदूरों का कहना सरकार ने नहीं कराए घर तक पहुंचाने के कोई इंतजाम

बालाघाट. एक तरफ तो केन्द्र सरकार और राज्य सरकार मजदूरों को उनके गांवों तक पहुंचाने का दावा करने के लिए स्पेशल ट्रेन और बसों चलाने का प्रबंधन करने और उनके खाने का दावा कर रही है. तो वहीं दूसरी ओर कई मजदूर पैदल चलकर तो कई मजदूर लॉक डाउन के बाद काम धंधे बंद होने से शेष बची रकम से किराये का वाहन कर घर पहुंच रहे है. मजदूरों की इस मजबूरी की कहानी दावों और हकीकत में अंतर को प्रदर्शित करती है.

सोमवार को दो अलग-अलग स्थानों से दर्जनों मजदूर बचाकर रखी गई रकम को किराये के वाहन में खर्च कर अपने घर पहुंचे. पहली कहानी है आदिवासी अंचल में निवासरत उन ग्रामीणों की जो पैसे कमाने के लिए अपने गांवों से दूर हैदराबाद तेलंगना में मिर्ची तोड़ने का काम करने गये थे. लेकिन लॉक डाउन के कारण उनका काम बंद होने और आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने से वह अपने गांव लौटना चाहते थे, किन्तु कोई साधन नहीं होने से आपस में सभी मजदूरों ने अपने पास बुरे समय के लिए बचाकर रखी गई रकम को इकट्ठा किया और लगभग डेढ़ लाख रूपये में दो ट्रक को किराये पर लेकर वह अपने गांव की ओर चल पड़े. लेकिन उनका दुर्भाग्य कि जिस वाहन को उन्होंने किराये से घर तक छोड़ने के लिए तय किया था वह उन्हें भरवेली के ट्वेझरी में ही छोड़कर वापस लौट गया. जिसकी जानकारी भरवेली थाना प्रभारी राजेन्द्र नरवरिया को मिलने के बाद उन्होंने बाहर से लौटे मजदूरों को भोजन, पानी कराकर उनके गांव तक जाने की व्यवस्था की.  

जबकि दूसरी कहानी सूरत में बालाघाट जिले के खारा, लिंगा, हट्टा, लालबर्रा, देवगांव, ब्रम्हनी, भांडी, डोंगरगांव, रोशना, कासपुर, सिंगोड़ी सहित अन्य ग्रामों में रहने वाले मजदूरों की है, जो लॉक डाउन के बाद सूरत में कई दिनों तक फंसे रहे. इस दौरान उन्होंने जिले के जनप्रतिनिधि, समाजसेवी और प्रशासन से मोबाईल और व्हाट्सअप के माध्यम से अपने घरों तक पहुंचाने की कई मिन्नते की, किन्तु उनकी यह मिन्नते धरी की धरी रह गई. अंततः जनप्रतिनिधि, समाजसेवी और प्रशासन से कोई मदद नहीं मिलने से परेशान, मजदूरों ने सूरत प्रशासन से किराये के वाहन में घर तक जाने की गुहार लगाई, जिसे स्वीकारते हुए सूरत प्रशासन ने उन्हें किराये का वाहन उपलब्ध कराया. जिससे 36 लोग सोमवार को लाखो रूपये का किराये देकर बस से बालाघाट पहुंचे. जहां जिम्मेदार नागरिक की तरह उन्होंने अपना जिला चिकित्सालय में कराया. जहां से वह पुनः किराये के छोटे-छोटे वाहनों से अपने घर पहुंचे.  

मजदूरों को देश की मजबूत रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, लेकिन इन मजदूरों को देखने वाला और इनके दुखों का समाधान करने वाला कोई नहीं है. जिले के आदिवासी क्षेत्र और अन्य क्षेत्रो से हैदराबाद के तेलंगाना और सूरत से बालाघाट लौटे मजदूरों का कहना सरकार ने उनके घर तक पहुंचाने के कोई इंतजाम नहीं कराये.

कंजई क्वारेंटाईन सेंटर में रह रहे युवक रायसिंग बिसेन ने बताई आपबीती

लालबर्रा क्षेत्र अंतर्गत बोट्े निवासी युवा रायसिंग बिसेन, सूरत की एक बड़ी हॉटल में शेफ का काम करता था. इसके अलावा सूरत में बालाघाट जिले के कई और लोग विभिन्न जगह में मिठाई के काम में लगे थे. लेकिन कोविड-19 से निपटने किये गये लॉक डाउन के बाद काम धंधे बंद होने से वह सभी लोग बालाघाट अपने गांव आना चाहते थे. युवक रायसिंग बिसेन ने बताया कि सूरत में काम कर रहे बालाघाट जिले के विभिन्न ग्रामो के लोगों ने क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से लेकर समाजसेवी और प्रशासन से बालाघाट तक लाने के लिए उनके मोबाईल नंबर और व्हाट्सअप नंबर पर फोन और मैसेज कर कई बार मदद मांगी किन्तु किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की. जब कोई मदद नहीं मिली तो लगभग 36 लोगों ने अपने-अपने पास जमापूंजी से लगभग डेढ़ लाख रूपये में किराये से एक बस की. जिससे आज सोमवार वह बालाघाट पहुंचे. जहां अस्पताल में चेकअप कराने के बाद सभी लोग टैक्सी के माध्यम से अपने-अपने घर लौट गये. जब वह घर पहंुचा तो बालाघाट में चिकित्सीय जांच के बाद होम क्वारेंटाईन के निर्देश के बावजूद स्थानीय पंचायत अमले ने उसे कंजई होम क्वारेंटाईन में रखवाया है, हालांकि वह इससे व्यथित नहीं है लेकिन दुःख इस बात का है कि मजदूरों को बाहर से लाने का दावा कर रहे शासन, प्रशासन ने हम जैसे मजदूरों को लाने के लिए हमारी कोई मदद नहीं की.  

Web Title : WORKERS COMPULSION: NO PEDESTRIANS, A RENTED VEHICLE, A HOUSE, WORKERS SAY, GOVERNMENT HAS NOT MADE ANY ARRANGEMENTS TO REACH THE HOUSE