पापी को मिटाने पर नर्क और पाप को मिटाने पर मिलता है मोक्ष-प्रवर पूज्य प्रवीण ऋषि म.सा.

बालाघाट. बालाघाट की पावन धरा पर उपाध्याय प्रवर पूज्य प्रवीण ऋषि जी म. सा. द्वारा जीवन को बदलने दिये जा रहे प्रवचन की कड़ी में महावीर कथा का गुणगान करते हुए बताया गया कि आखिर किस तरह भगवान महावीर तीर्थंकर परमात्मा बने.  महावीर गाथा में आये प्रसंग विश्वभूति मुनी और विशाखनंद के दुश्मनी के बाद आयुष्य पूर्ण करने पर लिये गये जन्म की कथा बताते हुए पूज्य प्रवीण ऋषि म. सा. ने कहा कि तप और साधना कर अनेक लब्धि हासिल करने वाले विश्वभूति, अगले जन्म में पोतनपुर राज्य के प्रजापिता के यहां त्रिपुष्ट के रूप में जन्म लिया और विशाखनंदी उस राज्य के विशाल साम्राज्य के सताधीश अश्वग्रीव के रूप में. दोनो का जन्म पिछले जन्म के पुण्य कर्म और जिस सोच के साथ अंतिम सांस ली थी, उसके अनुसार रहा.  

विश्वभूति मुनी ने तप और संयम कर ऐसी शक्ति और लब्धि पा ली थी कि यदि वे तिनका तोड़ ले तो करोड़ो सोने की मोहरे बरसे सकते थे, फेंके तो शस्त्र बन जाता. लेकिन क्षमा ना करने के कारण विशाखनंदी को मारने के काम आई. व्यक्ति जैसा चाहे वैसा जी ना सकता है, याद रखना, जैसा परिवार हमें बनाता है, वैसे हम बनते है, मनुष के जीवन में कर्म बाद में आता है, पहले परिवार आता है. परिवार हमें सोच दिया और जीवन शैली दी, वैसे ही हम हो जाते है. विशाखनंदी के बिगड़ने के पीछे उनकी मां थी. चूंकि विशाखनंदी ने भय में आंख मूंदी थी और मुक्ति दूत बनने की बजाये विश्वभूति ने यमदूत बनने का सपना देखा था. अगले जन्म में विशाखनंदी ने अश्वग्रीव के रूप में जन्म लेकर सत्ताधीश बना. जिस फिलिंग के साथ व्यक्ति जीवन की अंतिम सांस लेता है, उसी उसी फिलिंग के साथ उसे नया जीवन मिलता है. वहीं विशाखनंदी की मौत की सोच के साथ जीवन त्यागे विश्वभूति मुनी का जन्म, अश्वग्रीव के विशाल साम्राज्य के एक राज्य पोतनपुर के प्रजापति के पुत्र त्रिपुष्ट के रूप में हुआ. जैसे श्रीकृष्ण वासुदेव के जन्म की घोषणा हुई थी. वैसे ही त्रिपुष्ट के जन्म के समय भी हुई थी. अश्वग्रीव के शासन से परिचित प्रजापति ने पुत्र के जन्म को छिपाया. प्रजापिता के यहां जन्म पुत्र आचल और त्रिपुष्ट बढ़े होने लगे. इसी दौरान ऐसे कई प्रसंग आयें, जिसमें अश्वगिरी को लगने लगा कि उसके जीवन का अंत त्रिपुष्ट के हाथो होगा, उसने प्रजापिता को दोनो पुत्रों को राजसभा में भेजने का आदेश दिया, लेकिन प्रजापिता ने अश्वगिरी को युद्ध के लिए आमंत्रित किया और युद्ध में अश्वगिरी को त्रिपुष्ट ने मार गिराया. एक प्रसंग सुनोते हुए प्रवीण ऋषि म. सा. ने कहा कि भगवान महावीर ने कहा कि जीवन में तन, सपंति, सत्ता छूट जाती है और मौत आ जाती है लेकिन दुश्मनी बरकरार रहती है, बैर के रिश्ते जन्म-जन्म चलते है, इसलिए ऐसे रिश्ते मत बांधो. आज का जो प्रसंग है, उसी सोच का है. सोच यह कि पाप को मिटाने के बजाये, पापी को मिटाने है. हम पाप से लड़ने के बजाये पापी से लड़ते है. यदि हमारे दोस्त ने कोई गलती की है तो हम गलती को मिटाने चाहते है लेकिन यदि हमारे दुश्मन ने कोई गलती की है तो हम दुश्मन को मिटाना चाहते है. जब हम पाप को मिटाने के बजाये पापी को मिटाने, गुनाह समाप्त करने के बजाये गुनाहगार को समाप्त करने का सोचते है, उस समय हमारा किया गया तप और धर्म व्यर्थ हो जाता है. क्योंकि पापी को मिटाने में नर्क मिलता है और पाप को मिटाने में मोक्ष मिलता है. पाप को दूर करना चाहता हुं, यह सोचना कि पाप दूर हो ना कि पापी दूर हो. जिंदगी में पता ही नहीं चलता है, दोस्त कब दुश्मन और कब दुश्मन, दोस्त बन जायेगा. सता के गलियारे में कब दुश्मन, दोस्त बन जायेंगे, कब दुश्मन, दोस्त बन जायेंगा, पता ही नहीं चलता है, चुनाव में भ्रष्टाचार चुनाव के बाद सदाचारी. ऐसा नहीं होना चाहिये. जो किसी को क्षमा नहीं करता है, स्वयं को दुश्मनी का बोझ ढोना पड़ता है. दिल को शांति देना चाहते तो दुश्मनी की जगह मत रखो.  


Web Title : WHEN THE SINNER IS WIPED OUT, HELL IS ATTAINED AND SIN IS ELIMINATED.